- ‘जबरन’ और ‘धोखे’ से धर्मांतरण और विवाह यूपी में बना अपराध
आखिरकार ‘अध्यादेश’ के रूप में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपना बहुप्रतीक्षित ब्रह्मास्त्र लॉन्च कर ही दिया। ‘जबरन’ और ‘धोखे’ से किए जाने वाले धर्मांतरण और विवाह को अब यूपी में अपराध बना दिया गया है। हालांकि, इसमें ‘लव जिहाद’ जैसा कोई जिक्र नहीं है जिसको लेकर वह महीनों से बयान दे रहे थे।
नवंबर के अंतिम सप्ताह में यूपी में एक के बाद एक 2 महत्वपूर्ण घटनाएं घटित हुईं। इलाहबाद हाईकोर्ट ने ‘प्रेम’ को आधुनिक सन्दर्भों में परिभाषित किया। न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल और न्यायमूर्ति पंकज नकवी की खंडपीठ ने एक वयस्क हिन्दू लड़की और मुस्लिम लड़के के प्रेम और स्वेच्छा से विवाह किये जाने को पवित्र गठबंधन के रूप में परिभाषित किया। कोर्ट ने न सिर्फ इसका विरोध करने वाले अभिभावकों की एफआईआर को खारिज किया, पुलिस और राज्य को फटकारा, बल्कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्ववर्ती 2 एकल पीठों के फैसलों को भी रद्द कर दिया। इस फैसले के ठीक अगले दिन यूपी सरकार ने ‘जबरन’ और ‘धोखे’ से धर्मांतरण रोकने का अध्यादेश लागू कर दिया।
बेशक योगी सरकार की तैयारियां काफी दिन से चल रही हों लेकिन हड़बड़ी में कैबिनेट की मीटिंग बुलाकर जिस तरह से अध्यादेश को लागू करने का फैसला किया गया है, उसे इलाहबाद हाईकोर्ट के फैसले की प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा रहा है। ‘अध्यादेश’ के जरिए योगी आदित्यनाथ ने न केवल अपना राजनीतिक एजेंडा लागू किया है, बल्कि संविधान के मूलभूत अधिकारों की रौशनी में दिए गए उच्च न्यायालय के निर्णय को धता बताते हुए संविधान और न्यायपालिका दोनों को अपमानित किया है।
‘अध्यादेश’ ऐसे धर्म परिवर्तन को अपराध की श्रेणी में गिनेगा जो मिथ्या निरूपण, बलपूर्वक, असम्यक प्रभाव, प्रतिपीड़न या कपट रीति से अथवा विवाह द्वारा एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तन के लिए किया जा रहा हो। अवयस्क महिलाएं अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति के धर्म परिवर्तन के लिए इसमें कड़े धर्म का प्रावधान है। इसमें सामूहिक धर्म परिवर्तन के मामले में संबंधित समाजी संगठनों की मान्यता रद्द करने और उनके विरुद्ध कठोर कार्रवाई करने का प्रावधान है। ऐसा धर्म परिवर्तन धोखे और छल से नहीं किया गया है, इसका सबूत देने की जिम्मेदारी भी परिवर्तन करने वाले या करवाने वाले की होगी। किसी विहित प्राधिकारी (डीएम) के समक्ष 2 महीने पहले धर्म परिवर्तन की सूचना देनी होगी। इसमें एक साल से 5 साल की सजा और 15 हजार रुपये के दंड (वयस्क महिला, अनुसूचित जाति और जनजाति की महिला के सम्बन्ध में प्रावधान 3 से 10 साल तथा 25 हजार रु जुर्माना) का प्रावधान है।
आश्चर्य की बात यह है कि मिथ्या निरूपण, बलपूर्वक, असम्यक प्रभाव, प्रतिपीड़न या कपट रीति से धर्म परिवर्तन पहले ही आईपीसी में गंभीर अपराध के रूप में चिन्हित हैं। इसी तरह छल और फरेब करके शादियां ’भारतीय दंड विधान’ की धाराओं के अंतर्गत अपराध भी है और बड़े पैमाने पर ‘देशीय’ और ‘अंतर्देशीय’ फर्जी विवाह (ज्यादातर एक ही धर्म और जाति में) धड़ल्ले से होते भी रहते हैं।
अध्यादेश इस अंदाज में लाया गया है कि यह ‘अंतर्धार्मिक प्रेम विवाह’ रोकने का यंत्र है। ‘प्रेम’
न जबरिया होता है, न इसमें धोखा होता है। ‘जबरदस्ती’ और ‘धोखा’ अपराध है, ‘प्रेम’ नहीं। योगी आदित्यनाथ सरकार का अध्यादेश संविधान के अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 25 से 28 का सीधा-सीधा उल्लंघन है। ये सभी मौलिक अधिकार हैं। अनुच्छेद 21 मनुष्य को जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार देता है, जबकि अनुच्छेद 25 से 28 धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार हैं।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन का अर्थ मात्र एक जीव के अस्तित्व से कहीं अधिक है। मानवीय गरिमा के साथ जीना तथा वे सब पहलू जो जीवन को अर्थपूर्ण तथा जीने योग्य बनाते हैं, इसमें शामिल हैं। न्यायपालिका ने पहले भी कई निर्णयों के माध्यम से इसके दायरे का विस्तार करते हुए इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, त्वरित न्याय, बेहतर पर्यावरण आदि को जोड़ा है। 2017 में निजता के अधिकार ने इसे विस्तार दिया। अब जब निजता भी मौलिक अधिकार का हिस्सा बन गई है तो कोई नागरिक अपनी निजता के हनन की स्थिति में याचिका दायर कर न्याय की मांग कर सकता है।
योगी सरकार का अध्यादेश वस्तुत: 1 तीर से 2 शिकार समेटने की नीयत से तैयार किया गया है। यह एक तरफ जहां मुसलमानों को केंद्रित करता है, वहीं इसकी नजर इसाई जमात पर भी है क्योंकि ऐसा प्रचार किया जाता है कि गरीब, बेसहारा, दलित और आदिवासियों में धर्म परिवर्तन की लौ क्रिश्चियन संस्थाएं ही ज्यादा लगाती हैं। इसमें जिला अधिकारी को सूचित करने का प्रावधान है लेकिन विधिक रूप से डीएम में क्या शक्तियां निहित होंगी, इसका कहीं उल्लेख नहीं। पहली दृष्टि में अध्यादेश अंतर्विरोध पूर्ण दिखता है। जब इसमें स्वयं सूचित करने का प्रावधान है तो मध्यस्थ कहां से आएगा, तकनीकी तौर पर यह महिलाओं को ज्यादा क्षति पहुंचाएगा। इसके चलते ‘लिव इन रिलेशन’ की संभावनाएं ज्यादा बढ़ जाएंगी और तब जोड़े एक महीने का समय लेकर ‘स्पेशल मैरीज एक्ट’ के तहत शादी कर लेंगे।
वस्तुत: योगी शासन का ये अध्यादेश बेमेल या जबरिया शादियों की फिक्र में डूबा नहीं है। आश्चर्य की बात है कि प्रदेश की 67 फीसद आबादी ग्रामीण है जहां अंतर्धार्मिक विवाह तो दूर, अंतर्जातीय विवाह भी अपवाद स्वरूप ही होते हैं। एक गैर सरकारी संस्था द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार, प्रदेश के शहरों में केवल सवा 2 प्रतिशत विवाह ही अंतर्धार्मिक होते हैं। ऐसे में सवाल यह है कि जिस सरकार को बहुत बड़े पैमाने पर बेरोजगार युवाओं की चिंता नहीं, वह इतनी छोटी तादाद वाले विवाहों को लेकर बेचैन क्यों है। दरअसल, अध्यादेश की चैपड़ पर ‘लव जिहाद’ और इसकी आड़ में सामाजिक विद्वेष को दीर्घ आकार देना ही योगी आदित्यनाथ सरकार का केंद्रीय मुद्दा है।
यदि कोरोना की पीड़ा और आर्थिक विनाश के दंश में डूबे प्रदेश का बहुसंख्यक समाज शांत और दुखद मुद्रा में किंकर्तव्यमूढ़ बैठा रह गया तो भाजपा 2022 का उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव कैसे जीत पायेगी, सामाजिक घृणा और जातिगत उद्वेलन की सीढ़ी की पहली पायदान के रूप में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ‘लव जिहाद अध्यादेश’ लागू करने की घोषणा तो अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में जौनपुर और देवरिया की उप चुनावी आमसभा में ‘राम नाम सत्य’ कर दिए जाने की धमकी भरे नारे के साथ कर दी थी, लेकिन इसकी विधिवत प्रक्रिया की शुरुआत नवंबर में की गई और 24 नवम्बर की कैबिनेट मीटिंग में इसे पारित कर दिया गया।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पता है कि अप्रैल 2021 से ‘नेशनल रजिस्टर ऑफ पॉपुलेशन’
(एनआरपी) शुरू होने वाला है। इससे पहले ‘लव जिहाद’ के नाम पर यूपी पुलिस और आरएसएस के ‘सांस्कृतिक थानेदार’ लड़के-लड़कियों की धरपकड़ करके समूचे सूबे को गरमा देंगे। बस, फिर क्या, ‘एनआरपी’ जब शुरू होगा तो ‘एनआरसी’ और ‘सीएए’ का ‘टैग’ लामुहाला चिपकेगा। मुस्लिम मोहल्लों में विवाद भड़केगा या भड़काया जायेगा। जवाब में हिंदू मोहल्ले सांप्रदायिक रंग की रंगरेजी प्रतिक्रिया देंगे। किसी भी चुनाव को जीतने के लिए गुटों में विभक्त ‘पोलराइज’ जहर भरे ऐसे समाज से ज्यादा उन्मुक्त समाज और क्या हो सकता है। यूपी में 2022 की पूरी ्क्रिरप्ट इस तरह रची जा रही है।
‘उप्र राज्य विधि आयोग’ नवंबर 2019 में एक ऐसे कानून को बनाए जाने की सिफारिश वाली रिपोर्ट प्रदेश सरकार को भेज चुका था जो प्रलोभन, धोखा, बहका और फुसला कर धर्म परिवर्तन करने पर सख्ती से रोक लगाता है। इसके साथ ‘आयोग’ ने एक मसविदा विधेयक भी राज्य सरकार को दिया था जिसमें कानून तोड़ने वालों पर सश्रम कारावास और आर्थिक जुर्माना का प्रावधान है।
यूं तो भाजपा शासित कई राज्यों के मुख्यमंत्री लव जिहादी लंगोट बांध कर राजनीतिक दंगल में कूदने की तैयारी में जुटे हैं, लेकिन यूपी की बात ही कुछ और है। लव जिहाद का मूल विचार तो ‘आरएसएस’ को आदर्श मानने वाली तटीय कर्नाटक की संस्था हिंदू जनजागृति समिति का है लेकिन इसके फलने-फूलने की पृष्ठभूमि साल 2014 के लोकसभा चुनावों की पृष्ठभूमि का उप्र है। योगी आदित्यनाथ इस विचार के प्रारंभिक प्रचारकों में हैं।
2013 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर दंगों में 62 लोगों की हत्या हुई थी। इन्हीं दंगों ने 50 हजार लोगों को इस क्षेत्र से विस्थापन के लिए मजबूर कर दिया था। इन विस्थापितों में हिंदू बहुल क्षेत्र में रहने वाले मुसलमान थे और मुस्लिम बहुल इलाकों में रहने वाले हिंदू भी। प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार ने इन दंगों से निबटने में जैसी मूर्खतापूर्ण प्रशासनिक कार्रवाइयां की थीं उसने ‘लव जिहाद’ के सवाल को एक बड़े राजनीतिक एजेंट के रूप में पुष्प पल्लवित करने में भारी मदद की थी। संसदीय चुनावों में भाजपा को अपने इस अभियान का जबरदस्त लाभ भी हुआ।
चुनाव जीतने के बाद के 2 साल में यह अभियान निरंतर चालू रहा क्योंकि साल 2017 में विधानसभा के चुनाव प्रस्तावित थे। चुनाव जीतने के बाद मुख्यमंत्री की गद्दी पर बैठे योगी आदित्यनाथ ने एक बार फिर ‘लव जिहादी’ अभियान जारी रखना चाहा। उन्होंने इसके साथ ‘रोमियो स्क्वाइड’ का गठन भी किया लेकिन जिसका उद्देश्य धर्म और सांस्कृतिकता की दुहाई देकर युवाओं के बीच लैंगिक मित्रता और मानवीय रिश्तों को छिन्न भिन्न कर देना था। युवाओं की बात तो छोड़िए अभिभावकों और बुजुर्गों ने भी ‘संघ’ और भाजपा के इन सांस्कृतिक कप्तानों की इस लम्पटई को हिकारत भरी निगाहों से देखा। इसके चलते मामले को कुछ समय के लिए ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
इस बार इसके पुनरुद्घोष के लिए योगी आदित्यनाथ ने इलाहबाद हाईकोर्ट के एक फैसले को नजीर के रूप में पेश करते हुए अभियान छेड़ा। वस्तुत: हाईकोर्ट की एक एकल पीठ ने 30 सितंबर ने एक मुस्लिम लड़की द्वारा धर्म परिवर्तन करके हिंदू बन जाने और फिर हिन्दू लड़के के साथ विवाह का लेने के मामले में अपने फैसले में कहा था कि ‘मात्र विवाह करने के उद्देश्य से किया गया धर्म परिवर्तन मान्य नहीं होगा।’ यहां गौरतलब यह है कि मुस्लिम से हिन्दू बन गई नववधू द्वारा अपने अभिवावकों से सुरक्षा प्राप्ति के लिए दायर उक्त याचिका के अलावा भाजपा या ‘संघ’ के किसी अनुषांगिक संगठन ने इस विवाह का विरोध नहीं किया था। मुख्यमंत्री ने भी बड़ी चालाकी से ‘कोर्ट’ के फैसले को कुछ इस अंदाज में अपने अभियान के साथ जोड़ा कि गोया यह भी लव जिहाद का मामला दिखाई दे।
यही चालाकी राज्य सरकार ने राज्य विधि आयोग की रिपोर्ट को लेकर की। साल भर से धूल चाटती आयोग की रिपोर्ट को अब आकर इस्तेमाल करने के ‘सही वक्त’ के रूप में देखा गया। मीडिया में आयोग की रिपोर्ट को कुछ इस तरह पेश किया गया, ताकि वह ऊपरी निगाह से ‘लव जिहाद’ के खिलाफ की जाने वाली कार्रवाई लगे, जबकि यह वास्तविकता नहीं है।
मुख्यमंत्री के बयानों पर टिप्पणी करते हुए आयोग के अध्यक्ष जस्टिस (रिटायर्ड) एएन मित्तल ने कह दिया, ‘यदि योगी सरकार हिन्दू-मुसलमान विवाह की रोकथाम के सीमित अर्थों में कोई कानून बनाने की कोशिश करती है तो वह वैधानिक मापदंडों पर एक दिन भी नहीं टिक पायेगा।’ उन्होंने कहा कि उनकी सिफारिशों का ‘लव जिहाद’ से कोई लेना देना नहीं और न ही 268 पेज वाली उक्त रिपोर्ट में कहीं भी इसका इस्तेमाल ही हुआ है।
कट्टर हिंदूवादी नेता के रूप में योगी आदित्यनाथ की तस्वीर मुख्यमंत्री बनने से पहले से ही बड़ी प्रबल थी। मुख्यमंत्री बन जाने के बाद उन्होंने अपनी इस इमेज को और भी तराशा। प्रशासनिक मोर्चों पर मिलने वाली नाकामयाबी, पार्टी के भीतर उमड़ते गहरे असंतोष, भाजपा जन प्रतिनिधियों द्वारा उनके विरुद्ध मोर्चा खोल लेने और आलाकमान की तिरछी नजरों से बचने का उन्हें एक ही जरिया नजर आया, कट्टर मुस्लिम विरोधी अवतार के रूप में प्रकट होते रहना।
‘नागरिकता संशोधन कानून’ विरोधी आंदोलन को उन्होंने जिस कड़ाई से कुचला, गौ हत्या के नाम पर की गई व्यापक धरपकड़ उनके रूप को निखारने में जिस तरह ‘गुणकारी हल्दी’ और ‘चन्दन’ का प्रतिरूप बनीं, यह उनके लिए संतोष की बात थी लेकिन कोविड काल में आर्थिक विपन्नता जैसे-जैसे भयावह रूप धारण करती जा रही है, उसके संकट से निबटने के लिए उनका ‘प्रवासी रोजगार आयोग’ करोड़ों रुपए का केंद्र से आवंटन का झुनझुना आदि सभी बेकार साबित हो रहे हैं। इस मुद्दे को लेकर भाजपा आलाकमान भी बेचैन है।
आने वाले 4 राज्यों के विधानसभा चुनावों से पहले ‘लव जिहाद’ उन्हें सारी समस्याओं को ‘आइना दिखाने’ का एक दुरुस्त फार्मूला लग रहा है। उन्हीं की देखादेखी आलाकमान के निर्देशों पर इन बाकी भाजपा मुख्यमंत्रियों ने उठापठक शुरू कर दी है। जहां तक योगी जी का ताल्लुक है, उनके लिए तो ‘लव जिहाद’ उनका अपना ‘ब्रांड यूपी’ है ही और सामने चढ़ाई करने के लिए यूपी विधान सभा का हिमालय है ही।
लगता है कि आने वाले दिनों में यूपी में प्रेम और विवाह की ख्वाहिश रखने वाले अनेक युवा जोड़े पुलिस और सांस्कृतिक ‘थानेदारों’ के दमन और उत्पीड़न के शिकार होंगे। योगी ‘अध्यादेश’ युवा जोड़ों को आतंकित तो करेगा ही, इसके खास निशाने पर होगी भारत की महिला प्रजाति, जिसका दाम्पत्य अब तक पिता और पति के हाथों रेहन रखा जाता था। गिरवी रखने वाले गैंग में एक और पार्टनर के रूप में अब राज्य भी जुड़ गया है। सबसे खूंखार पार्टनर के बतौर!
-अनिल शुक्ल, उत्तरप्रदेश