कुर्सी खतरे में!

राकेश  प्रजापति, भोपाल। 

….. मध्यप्रदेश उपचुनाव में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन के बाद नेतृत्व पर उठ रहे सवाल
…. दो पदों पर काबिज कमलनाथ पर किसी एक पद को छोड़ने का दबाव बना  

हाल ही में मध्यप्रदेश में हुए उपचुनावों में कांग्रेस के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद कमलनाथ के नेतृत्व को लेकर अन्दरखाने में सवाल उठने लगे हैं! भले ही कमलनाथ के प्रदेश में पार्टी की कमान संभालने के बाद मध्यप्रदेश की सत्ता में 15 साल बाद कांग्रेस की वापसी हुई थी, लेकिन उसके बाद से ही कमलनाथ लगातार संगठन से लेकर सरकार चलाने और बचाने दोनों में ही में असफल साबित हुए हैं। सबसे बड़ा कारण उनकी कार्पोरेट जैसी कार्यप्रणाली से न तो वे जनता से जुड़ पाए और न ही संगठन को मजबूत कर पाए! सरकार बनने के करीब 15 माह बाद जिस तरह से प्रदेश में एक के बाद एक राजनीतिक घटनाक्रम हो रहे हैं, उससे कमलनाथ की छवि एक असफल नेता के तौर पर उभर कर आई है जिससे कमलनाथ अब चाह कर भी नहीं बदल पाएंगे? कमलनाथ का केन्द्रीय राजनीति से प्रदेश की राजनीति में आना उनके 40 साल के राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी भूल ही कही जाएगी? या फिर पुत्र मोह में अपने पुत्र नकुलनाथ को राजनीति में स्थापित करने की चाह उन्हें ले डूबी?
खैर, कमलनाथ कांग्रेस पार्टी में वर्तमान समय में दो पदों पर हैं। अब उन पर किसी एक पद को छोड़ने का दबाव बना हुआ है। वे पीसीसी अध्यक्ष के साथ ही पहले मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। अब भी वे कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष के साथ ही नेता प्रतिपक्ष भी हैं। पार्टी की उपचुनाव में हुई पराजय के बाद से माना जा रहा है कि उन्हें अब दो में से किसी एक पद से इस्तीफा देना ही होगा? सूत्र बताते हैं कि कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष पद छोड़ सकते हैं? उन्होंने इसकी पहल लोकसभा चुनावों के नतीजे आने के तुरंत बाद की थी? इसकी वजह है वे संगठनात्मक रूप से असफल रहे हैं। यही वजह है कि अब प्रदेशाध्यक्ष पद के लिए पार्टी नेताओं के नामों को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई हैं। उनके प्रदेशाध्यक्ष का पद छोड़ने के बाद माना जा रहा है कि उनके उत्तराधिकारी पार्टी के वरिष्ठ नेता अजय सिंह या फिर विधायक जीतू पटवारी को कमान दी जा सकती है। अजय सिंह की संभावना अधिक होने की वजह है उनका कमलनाथ के साथ अच्छा तालमेल होना।
यदि विधानसभा और उपचुनाव पर नजर डालें तो कांग्रेस की सबसे दयनीय हालत विंध्य और मालवा में हुई है। आम चुनाव में कांग्रेस को मालवा में अच्छी सफलता मिली थी लेकिन उपचुनाव में सात में से उसे छह सीटों पर हार का सामना करना पड़ा है। इससे तय है कि पार्टी इस इलाके में अपनी पकड़ को कायम रखने में पूरी तरह से असफल साबित हुई है। इसके पहले कांग्रेस अपने गढ़ विंध्य अंचल में भी बुरी तरह से असफल हो चुकी है। ऐसे में कमलनाथ के उत्तराधिकारी के रूप में इन अंचलों के क्षत्रपों में से किसी को कमान दी जा सकती है? जिससे कि पार्टी का प्रभाव फिर से कायम हो सके। यही वजह है कि खुद चुनाव हारने के बाद अजय सिंह का नाम भी चर्चा में है। उपचुनाव में वे खासे सक्रिय रहे हैं। इसी तरह से मालवा अंचल से जीतू पटवारी, सज्जन सिंह वर्मा, अरुण यादव जैसे नाम चर्चा में हैं।
राजनीतिक हलकों में चर्चा के मुताबिक, कमलनाथ यदि एक पद छोड़ते हैं तो उत्तराधिकारी ग्वालियर-चंबल अंचल से भी हो सकता है? इसके संकेत दिग्विजय सिंह के बयान से भी मिलते हैं। श्रीमंत के जाने के बाद यहां कांग्रेस सर्वाधिक कमजोर हुई है। इस आधार पर यदि फैसला किया गया तो प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व पार्टी के वरिष्ठ नेता और लगातार जीत दर्ज करने वाले विधायक डॉ. गोविंद सिंह को दिया जा सकता है। यदि कमलनाथ ने नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ते हैं तो भी गोविंद सिंह ही उत्तराधिकारी बनने के सबसे मजबूत दावेदार माने जा रहे हैं। प्रदेश की सत्ता से जिस तरह से कांग्रेस बाहर हुई है, उसके लिए कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को बराबर जवाबदार माना जा रहा है। इसलिए संभव है कि इन दोनों नेताओं को प्रदेश की राजनीति से अलग कर केंद्र की राजनीति में उपयोग किया जाए। ऐसी स्थिति में कमलनाथ को दोनों पद छोड़ने पड़ सकते हैं। ऐसे में एक पद पर किसी वरिष्ठ, जबकि दूसरे पर किसी युवा को मौका देकर संतुलन साधा जा सकता है।
दूसरी ओर, प्रदेश में भाजपा की शिवराज सरकार पूरी तरह से स्थिर हो चुकी है, लेकिन अब सबसे बड़ी मुसीबत कार्यकर्ताओं के साथ ही मंत्रिमंडल के दावेदारों से लेकर उपचुनाव हार चुके ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थकों को सत्ता और संगठन में समायोजित करना मुसीबत बन गया है। पार्टी के अनुकूल परिणाम आने के बाद प्रदेश में जल्द ही शिवराज के मंत्रिमंडल विस्तार की कवायद शुरू हो गई है। माना जा रहा है कि कभी भी मंत्रिमंडल का विस्तार हो सकता है। इस विस्तार में एक बार फिर चुनाव में बड़े अंतर से जीत दर्ज करने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी तुलसीराम सिलावट और गोविंद राजपूत का शामिल होना तो पहले से ही तय है।
इनके अलावा चार अन्य रिक्त पदों के लिए सात विधायकों द्वारा दावेदारी की जा रही है। इससे मंत्रिमंडल विस्तार में किसे शपथ दिलाई जाए और किसे नहीं, यह तय करना सत्ता व संगठन के लिए मुश्किल बन गया है। दरअसल, मंत्रिमंडल विस्तार की सुगबुगाहट शुरू होते ही दावेदार पूरी तरह से सक्रिय हो गए हैं। इन दावेदारों में विंध्य अंचल के नेताओं की संख्या सर्वाधिक है। सबसे अधिक मुसीबत सरकार के सामने उपचुनाव हार चुके तीन मंत्री इमरती देवी, एंदल सिंह कंसाना और गिर्राज दंडोतिया को समायोजित करने की है। मानाा जा रहा है कि उन्हें अब निगम मंडलों की कमान दी जा सकती है? इन तीनों की जगह किसे मंत्री बनाया जाएगा, किसे नहीं यह अभी तय होना शेष है।
सूत्रों की मानें तो फिलहाल गोविंद और तुलसी के अलावा किसी और को मंत्री पद की शपथ नहीं दिलाई जाएगी। इसकी वजह है इस बार सिंधिया समर्थकों के कारण कई सीनियर विधायक मंत्री नहीं बन सके हैं। इसकी वजह से एक अनार सौ बीमार की स्थिति बनी हुई है। इसलिए मंत्रियों की संख्या बढ़ाने के मामले को संगठन अभी टालने के मूड में है। फिलहाल, मंत्री पद के दावेदारों में राजेन्द्र शुक्ल, रामपाल सिंह, अजय विश्नोई, गौरीशंकर बिसेन, संजय पाठक, रमेश मेंदोला समेत एक दर्जन नेता शामिल हैं। इनमें से अधिकांश उपचुनावों में पूरी मेहनत की दम पर पार्टी प्रत्याशियों को जिताने में सफल रहे हैं। यही नहीं, संगठन में भी किस नेता को क्या पद दिया जाए और किसे नहीं, इसे लेकर भी मुश्किल बन सकती है।
दरअसल, अब तक पार्टी संगठन में किसी भी पद पर ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक को भागीदारी नहीं मिली है जिसकी वजह से माना जा रहा है कि संगठन में पदाधिकारियों की घोषणा में उनके समर्थकों को भी मौका देना पड़ेगा। इसकी वजह से कई पार्टी के कर्मठ और अनुभवधारी नेताओं को पद से वंचित करना पड़ेगा।
राकेश  प्रजापति, भोपाल। 

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