पश्चिम बंगाल: ममता की चुनौतियां और उम्मीदें

  • 2024 के लोक सभा चुनाव में विपक्ष को एकजुट कर सकती हैं ममता
  • चुनावों के दौरान ही प्रमुख विपक्षी पार्टियों को पत्र लिख कर बता चुकी थीं मंसूबे

अमरेंद्र कुमार राय

नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। वहां ममता बनर्जी की तीसरी बारसरकार बनचुकी है और वह भी पिछली दो बार से भी ज्यादा प्रचंड बहुमत से। लेकिन जब तक चुनाव नतीजे नहीं आए थे, मन में धुकधुकी लगी हुई थी कि क्या होगा? कहीं बीजेपी के साधनसंपन्न धुआंधार चुनाव प्रचार में ममता का तंबू उखड़ तो नहीं जाएगा? पर चुनाव के दौरानममता भले कर्ण की तरह लड़ी हों, जीतीं बिल्कुल अर्जुन की तरह।

चुनाव में ममता को लड़ते देख कर महाभारत की कथा याद आ गई। अर्जुन और कर्णआमने सामने थे। अर्जुन जब बाण चलाते तो कर्ण का रथ मीलों पीछे भाग जाता था।अर्जुन के बाणों के वेग के सामने वह न संभल पाता था, न ठहर पाता था। लेकिन जबकर्ण बाण चलाता था तो अर्जुन का रथ तीन पग पीछे हट जाता था।

अर्जुन का रथ जब तीन पग पीछे हटता था तो कृष्ण कर्ण के पराक्रम की सराहना करने से अपने आप को रोक नहीं पाते थे। उनके मुंह से अनायास निकल पड़ता था, वाह कर्ण वाह! जब कई बार ऐसा हुआ तो अर्जुन को बुरा लगा। उन्होंने कृष्ण से शिकायत की।

कहा, जब मैं बाण मारता हूं तो उसका रथ मीलों पीछे चला जाता है तब आप मेरी तारीफ नहीं करते। लेकिन उसके बाण से जब मेरा रथ सिर्फ तीन पग पीछे जाता है तो आप उसकी तारीफ करते हैं। तभी कर्ण ने बाण चलाया। अर्जुन का रथ कर्ण के रथ से कई गुना पीछे जा पहुंचा। अर्जुन को आश्चर्य हुआ। उन्होंने कृष्ण से पूछा क्या हुआ? तब कृष्ण ने रहस्य खोला।
उन्होंने बताया कि कर्ण के रथ पर सिर्फ कर्ण और उसका सारथी है। जबकि तुम्हारे रथ पर तीनों लोकों का भार लेकर मैं खुद बैठा हूं और तुम्हारी ध्वज की पताका पर अपने रोम-रोम में चट्टान बांधकर महावीर हनुमान जी बैठे हैं। इसलिए जब तुम बाण मारते हो तो कर्ण का रथ मीलों पीछे चला जाता है, जबकि तुम्हारे रथ पर इतना बोझ होने के बावजूद कर्ण अपने बाणों से तुम्हारे रथ को तीन पग पीछे ढकेल देता है।

इसी प्रकार ममता को अकेले प्लास्टर लगे पांव के साथ लड़ते देख ऐसा ही महसूस हुआ। एक तरफ मोदी, अमित शाह, राजनाथ सिंह (भीष्म पितामह, आचार्य द्रोण, कृपाचार्य टाइप) जैसे अनेक महारथियों से सजी-धजी सेना थी तो दूसरी ओर, अकेली साधन विहीन (बीजेपी की तुलना में) ममता बनर्जी। लेकिन जिस बहादुरी से वह लड़ रही थीं, उनकी तारीफ किये बिना लोग रह नहीं पाए। उनके उस कौशल का ही नतीजा रहा कि वह लड़ीं कर्ण की तरह, लेकिन जीतीं अर्जुन की तरह।
ममता को कर्ण की तरह लड़ते देख एक और बात मन में आई। कर्ण अंग देश के राजा थे। जबकि अंग देश तो बिहार में था। उसका पश्चिम बंगाल से क्या लेना-देना? फिर ममता ने ये हुनर कहां से सीखा? बाद में पता चला कि पश्चिम बंगाल अंग देश का ही विस्तार है। अंग का ही अपभ्रंश बंग है।

अंग को लोगों ने अपभ्रंश करके ओंग फिर वोंग और अंत में बोंग कर दिया। उसी बोंग को लिखते बंग हैं लेकिन बंगाली लोग बोलते बोंग हैं। अंग पहले मुंगेर, भागलपुर और उसके पूरब के इलाकों को बोला जाता था। अब भी कहा जाता है। अंग के पूरब में तब बहुत कम या न के बराबर आबादी हुआ करती थी।
बाद में अंग के लोग ही पूरब की ओर बढ़ते गए और जंगली दलदली जमीन को आबाद करते चले गए। अपने साथ वे अपनी वंग पहचान भी वहां लेते गए। अंग लोगों की आबादी के साथ ही वहां वर्मा और थाईलैंड जैसे सुदूर पूर्व के लोग भी आ गए। उन सबके मिश्रण से नई भाषा, नई संस्कृति बनी। लेकिन वहां के लोगों की पहचान अंग, वंग या बंग की ही बनी रही। आप कह सकते हैं कि आज का जो बंग है वहां आज के अंग के लोग ही पहले पहुंचे थे और उन्होंने ही वह नाम दिया।
अन्य संस्कृतियां बाद में आईं। एक और बात जो बंगाल को अंग से जोड़ती है। आप जानते हैं कि अंगराज कर्ण को राधेय भी कहते हैं। राधेय यानि राधा का पुत्र। लेकिन शायद आप यह नहीं जानते हैं कि दक्षिण बंगाल को आज भी राधा कहा जाता है। यानि वह अंग-बंग राधा पहचान अब भी ढो रहा है और ये दोनों पहचान कर्ण से जुड़े हैं।

इन चुनावों में ममता बनर्जी ने जब झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को अपने प्रचार में बुलाया तो भी आपका ध्यान इस तथ्य की ओर नहीं गया होगा। बस इतना ही गया कि आदिवासियों का जो समूह झारखंड में रहता है और झारखंड मुक्ति मोर्चा और हेमंत सोरेन का समर्थन करता है उसी समूह के लोग बंगाल में भी रहते हैं।
बहरहाल, इतिहास से अलग हटकर देखें तो ममता देश के एक राज्य की मुख्यमंत्री हैं और उन्हें इस देश के संघीय व्यवस्था में ही काम करना है जहां केंद्र में उसी बीजेपी की सरकार है जिसने ममता को उखाड़ फेंकने के लिए सारी रणनीति बनाई और नाजायज तरीकों के प्रयोग से भी परहेज नहीं किया। उसी सरकार का भेजा गया राज्यपाल है जिसके साथ तालमेल बिठाकर ममता को काम करना है। वह राज्यपाल भी ऐसा जिसके ममता से 36 के आंकड़े हैं। ममता को समर्थन देना तो दूर परेशान करने के तरीके अलग से ढूंढ़ता रहता है।
ममता के मंत्रियों को शपथ दिलाने के बाद उन्होंने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि वे हिंसाग्रस्त इलाकों का जल्दी ही दौरा करेंगे। उन्होंने इसके बारे में पहले ही राज्य सरकार को जानकारी दे दी है लेकिन अब तक उनकी यात्रा की व्यवस्था की जानकारी उन्हें नहीं दी गई है। मतलब बहुत साफ है कि ममता को घेरने वाले कदम उठाने में राज्यपाल जगदीप धनखड़ पहले की ही तरह कोई संकोच नहीं करेंगे। पहले तो विधान सभा में राज्यपाल को कहीं से समर्थन नहीं मिलता था।

ममता का अपना प्रचंड बहुमत तो था ही वामपंथियों और कांग्रेस का विपक्ष भी धनखड़ के साथ नहीं था। लेकिन अब पश्चिम बंगाल विधान सभा में बीजेपी 75 से ज्यादा सीटें जीतकर मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई है। उनके नेता शुभेंदु अधिकारी विपक्षी दल के नेता भी चुन लिए गए हैं। राज्य विधान सभा में उन्हें मुख्य विपक्ष के नेता के रूप में मान्यता भी मिल ही जानी है। कहने का मतलब यह कि अभी तो जो राज्यपाल सिर्फ राजभवन से ममता सरकार पर गोले बरसाते थे उन्हें अब विधान सभा के भीतर भी समर्थन मिलेगा।
जब से मोदी जी आए हैं विपक्ष एक तरह से गायब है। खासकर उनके दोबारा चुनकर आने के बाद से। कांग्रेस राहुल गांधी के भरोसे उम्मीद लगाए बैठी है और बाकियों को राहुल गांधी में नेतृत्व करने की क्षमता नहीं दिखती। हिंदी पट्टी के नेता या तो डर गए हैं या किन्हीं दूसरी वजहों से खामोश हैं।
वैसे भी मुलायम सिंह यादव अब काफी बुजुर्ग हो चुके हैं और लालू यादव का स्वास्थ्य भी अच्छा नहीं है। जेल से छूट तो गए हैं लेकिन पुरानी उर्जा से फिर पार्टी को मजबूत बनाना शायद अब उनके बस की बात नहीं। दोनों की पार्टी दोनों के सुपुत्रों अखिलेश और तेजस्वी के हवाले है, जिन्हें राजनीति में अभी बहुत कुछ सीखना है। अति महत्वाकांक्षी मायावती को भी भाई के मोह ने इतना डरा दिया है कि वे बीजेपी की एजेंट की भूमिका में नजर आने लगी हैं।
ऐसे में विपक्ष के नेता के लिए गैर हिंदी भाषी राज्यों की ओर ही रुख करना पड़ेगा। शरद पवार, स्टालिन और ममता बनर्जी ने भी अपना लोहा मनवाया है। पर जो जौहर ममता बनर्जी ने दिखाया है वो शरद पवार और स्टालिन नहीं दिखा पाए। इसलिए लोगों में उम्मीद जगी है कि वे 2024 के लोक सभा चुनाव में विपक्ष को एकजुट करने और मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी को पछाड़ने का बीड़ा उठा सकती हैं।

इसका संकेत भी उन्होंने चुनावों के दौरान ही सभी प्रमुख विपक्षी पार्टियों को पत्र लिखकर दे दिया है। उनका आक्रामक अंदाज, उनकी लड़ने की क्षमता, उनकी रणनीति, उनका सादा जीवन यह सब आम लोगों को प्रभावित भी करता है। पिछले दस सालों से मुख्यमंत्री बनने के बावजूद वे मुख्यमंत्री आवास की बजाय अपने साधारण से घर में रहती हैं। यह बात उन्हें आम लोगों से जोड़ती है। पर इसमें अभी वक्त है। तब तक तेल देखनी होगी, तेल की धार देखनी होगी।

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