‘क्रांति’ में बदला किसान आंदोलन!

ये चिंगारी, कहीं शोला न बन जाये?

  • बंगाल में भाजपा की हार के बाद किसानों के हौसले बुलंद
  • रणनीति के तहत 10 मई से ‘किसान क्रांति’ की शुरुआत

विशेष रिपोर्ट : वीरेंद्र सेंगर

नई दिल्ली। करीब 6 महीने से जारी चर्चित किसान आंदोलन अब एक नये जुझारू मोड़ पर आ गया है। दो मई तक ये आंदोलन ‘परखने’ के मोड़ पर था, क्योंकि पांच राज्यों के चुनाव परिणामों का इंतजार था। इंतजार खत्म हो चुका है। खास राजनीतिक प्रतिष्ठा का चुनाव पश्चिम बंगाल का रहा। इस चुनाव को जीतने के लिए प्रधानमंत्री मोदी जी ने अपनी प्रतिष्ठा भी दांव पर लगा दी थी। किसान आंदोलन के सभी बड़े नेताओं ने मोदी एंड कंपनी को हराने के लिए पश्चिम बंगाल में दर्जनों रैलियां की थीं। बताया था कि केंद्र की जुल्मी सरकार किस तरह से किसानों और मजदूरों का जीने का हक छीन रही है। इसे चुनाव में करारी हार देकर एक माकूल संदेश देना है। किसान आंदोलन को सफलता मिली।

चुनाव में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को भारी जीत मिली है। भाजपा नेतृत्व खींझ गया है। दिल्ली की सीमाओं पर धरना दे रहे किसानों के हौसले और बुलंद हो गए हैं। अब वे अपना आंदोलन ‘किसान क्रांति’ की तरह फैलाने की योजना बना चुके हैं। इसकी शुरुआत 10 मई से हो चुकी है।
दस मई, 1857 को प्रथम स्वतंत्रता क्रांति की शुरुआत मेरठ से हुई थी। दस मई की इस ऐतिहासिक तिथि से किसानों ने अपना आंदोलन ‘किसान क्रांति’ के रूप में मनाना शुरू कर दिया है। दिल्ली सीमा के तीन मोर्चों पर किसान आंदोलन में नया उत्साह देखने को मिला। बड़ी संख्या में किसान इन मोर्चों पर आ डटें हैं। गाजीपुर (यूपी) बॉर्डर पर लॉकडाउन के बाद भी तमाम किसान ट्रैक्टरों में उत्तराखंड और प. उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में पहुंचे। हालांकि कोरोना कर्फ्यू के कारण पुलिस ने कई जगह पर किसानों को रोका। सहारनपुर, रामपुर, मुरादाबाद, अलीगढ़ और हरिद्वार समेत कई जगहों पर आंदोलनकारियों की पुलिस के साथ तना-तनी भी हुई। कई जगह जब किसानों ने सड़क जाम करनी शुरू की तो पुलिस को आने का रास्ता देना पड़ा। कई जगह पुलिस और किसानों के बीच हाथापाई की नौबत भी आई। इस तरह रातों-रात गाजीपुर बॉर्डर पर 20 हजार से ज्यादा किसानों का जमावड़ा हो गया।
यहां किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत के सिपाहसालारों ने सरकार को चेतावनी दी कि यदि अब भी सरकार को अक्ल नहीं आई तो परिणाम सरकार के सख्त खिलाफ होंगे। इसकी पूरी जिम्मेदारी भाजपा सरकार की होगी। राकेश टिकैत का कहना है, ‘हमने पश्चिमी बंगाल में इस निष्ठुर सरकार को धक्का दे दिया है। अरबों रुपए का काला धन खर्च करने के बाद भी मोदी सरकार को करारी हार मिली है। लेकिन सरकार विवादित तीनों कानून वापस नहीं ले रही है। ऐसे में इस सरकार का पतन तय है।’
टिकैत के एक सिपहसालार कहते हैं कि 10 मई से आंदोलन ‘किसान क्रांति’ में बदल गया है। 1857 में इसी तारीख से स्वतंत्रता का प्रथम आंदोलन शुरू हुआ था। अब हम आंदोलन की क्रांति ज्वाला, गांव-गांव लेकर जाएंगे। लोगों से अपील करेंगे कि वे संघ के पाखंडी नेताओं और भाजपा नेताओं को सबक सिखाएं, लेकिन हिंसा से परहेज करें। इस नेता ने कहा, जरूरत पड़ने पर संघ और भाजपा नेताओं का मुंह जरूर काला कर सकते हैं। इसे हिंसा नहीं माना जाएगा। 15 दिन तक यही तरीका अपनाया जाएगा। इसके बाद भी मोदी एंड कंपनी जनता के सामने घुटने नहीं टेकती तो आगे की जोरदार कार्य योजना पर विचार किया जाएगा। कोरोना बीमारी के संदर्भ में टिकैत का कहना है कि किसानों की सहनशक्ति बहुत मजबूत होती है, फिर भी सावधानी बरतनी की वे अपील कर रहे हैं। वे कहते हैं कि कोरोना के नाम पर भाजपा सरकारें किसान आंदोलन को उखाड़ना चाहती हैं। हम चेतावनी दे रहे हैं कि शांतिपूर्वक धरने को हटाने की साजिश करेंगे तो किसान आर पार का संघर्ष करने के लिए मजबूर होंगे।

ऐसे में भाजपा नेताओं को अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहना होगा। हालांकि वे गांधीवादी तरीके में विश्वास रखते हैं। हिंसा में विश्वास नहीं रखते। यही नीति आंदोलन की ताकत भी है। लेकिन सरकार ने धैर्य की परीक्षा बार-बार ली तो किसान भी देवदूत नहीं है। हमें दो डंडे पड़े तो भाजपा नेताओं को भी गांव-गांव का गुस्सा झेलना होगा। किसान क्रांति सत्ता तख्त उखाड़ फेंकने की ‘काल’ दे सकती है। वैसे हम अभी एक महीने तक और इंतजार करेंगे। इसके बाद ही संयुक्त किसान मोर्चा के नेता अगली रणनीति तय करेंगे।
किसान नेताओं के इन कड़े तेवरों के बावजूद किसान आंदोलन को लेकर सरकार के रुख में किसी तरह की नरमी के संकेत नहीं है। यहां तक कि साजिश के तहत तमाम किसान नेताओं को आपराधिक मामलों में जेल भेजने की तैयारी है। एक ऐसा ही मामला टिकरी बॉर्डर का है। यहां किसान नेताओं पर एक लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार का मामला दर्ज किया गया है। प. बंगाल की एक जुझारू लड़की धरने में शामिल होने के लिए कोलकाता से 11 अप्रैल को टिकरी बॉर्डर आई थी। यह लड़की यहां से कोलकाता गए कुछ किसान नेताओं के साथ आई थी। शायद वह से कोरोना संक्रमित थी। ऐसे में यहां आकर कुछ दिन में उसकी तबीयत खराब हो गई। किसान नेताओं ने उसे पास के एक निजी अस्पताल में भर्ती करवा दिया था। यहां पर कुछ दिन बाद ही 30 अप्रैल को उसकी मौत भी हो गई। वैसे निश्चित रूप से ये तय नहीं हुआ था कि वह कोरोना संक्रमित थी। उसके लक्षण कोरोना वाले थे, लेकिन उसकी टेस्ट रिपोर्ट नेगेटिव थी। ये दावा किसान नेताओं का है।
युवती की मौत के बाद शव के साथ हजारों किसानों ने शव यात्रा निकालकर अपनी श्रद्धांजलि दी थी। उसे किसान मोर्चा की ओर से ‘शहीद’ का दर्जा भी दिया गया था। लेकिन मौत के 9 दिन बाद बहादुरगढ़ (हरियाणा) पुलिस ने कथित तौर पर लड़की के पिता की शिकायत पर 6 लोगों के खिलाफ सामूहिक बलात्कार की एक एफआईआर दर्ज कर ली है। आरोपियों में 4 किसान नेता हैं। दो महिला वालंटियर के भी नाम हैं। इस तरह 6 लोगों को आरोपी बनाया गया है। महिला आरोपियों पर आरोप है कि उन्होंने गैंगरेप के आरोपियों की मदद की थी। पुलिस प्रवक्ता ने कहा कि सामूहिक बलात्कार के दोषियों को गिरफ्तार किया जाएगा। किसानों की मनमानी नहीं चलेगी। 8 मई को इसी बॉर्डर पर संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं की बैठक भी हुई थी। इसमें चर्चा हुई थी कि पुलिस शहीद बालिका के मामले में कोई गंभीर साजिश रच रही है। इसका मुकाबला करने की तैयारी की जाएगी।
किसान आंदोलन के चर्चित नेता है गुरनाम सिंह चढूनी। इस मामले में उन्होंने कहा कि सरकार महीनों से किसान नेताओं को जेल भेजने की साजिश कर रही है। यह मामला भी फर्जी है। किसी तरह से बालिका के पिता पर दबाव डालकर यह गंदी हरकत की गई है। इसके बहाने किसान नेताओं को बदनाम किया जा रहा है। जबकि जुझारू आंदोलनकारी बालिका को सभी नेता बेटी मानते रहे हैं। उसे लेकर यह नीच सोच भाजपा नेता ही रख सकते हैं। चढूनी ने कहा कि वे सरकार के मंसूबों को सफल नहीं होने देंगे। दस मई को किसानों ने यहां तीनों धरना स्थलों पर धूमधाम से ‘किसान क्रांति’ दिवस मनाया। हजारों किसान पंजाब और हरियाणा से आ धमके। किसान क्रांति दिवस पर सभी के लिए लंगर खोल दिया गया, जो 24 घंटे तक लगातार जारी रहा। हजारों प्रवासी मजदूरों ने भी लंगर छका। मजदूरों ने भी आंदोलन में तन मन धन से जुड़ने का संकल्प लिया।
‘क्रांति दिवस’ पर मंगल पांडे सहित तमाम क्रांतिकारियों की फोटो मंच पर रखी गई। किसान नेताओं ने अपनी श्रद्धांजलि देते हुए ‘किसान क्रांति’ का संकल्प लिया। सिंघु बॉर्डर पर 10 मई को चढूनी के नेतृत्व में हजारों किसानों ने मोदी जी का पुतला दहन किया। मोदी सरकार मुर्दाबाद के नारों से सिंधु बॉर्डर गूंज उठा। इस अवसर पर गुरनाम सिंह चढूनी ने जोरदार भाषण दिया। उन्होंने हरियाणा के मुख्यमंत्री को भी खूब कोसा। चढूनी के उग्र तेवरों को लेकर तो संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं में कुछ मतभेद भी नजर आए। इस संदर्भ में जब टिकैत से सवाल किया गया तो उन्होंने जमकर सफाई दे डाली।
टिकैत बोले, ‘सभी नेताओं को भड़काऊ शैली से बचना चाहिए। प्रधानमंत्री के पुतला दहन को भी अच्छा नहीं मानते। लेकिन चढूनी जी एक बड़े किसान नेता है। वे जिम्मेदार भी हैं, लेकिन सरकार का रवैया निष्ठुर है। ऐसे में किसानों का गुस्सा भी जायज है। लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा अभी पूरी तरह से अहिंसक शैली का हिमायती है। हमें उम्मीद है कि इसी महीने मोदी जी किसानों के सामने घुटने टेक देंगे। वे ऐसा समय से कर देंगे, तो उनका सिंहासन बचा रहेगा, वरना राम ही मालिक है।’

 

1 Comment
  1. Mamta Singh says

    Umda lekh

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