- उत्तराखंड में बढ़ते कोविड संक्रमण के पीछे कुंभ का आयोजन भी जिम्मेदार
- पीएम के अनुरोध के बावजूद अंत तक साधु-संतों को खुष रखने की हुई कवायद
चाणक्य मंत्र ब्यूरो
देहरादून। हरिद्वार में आयोजित महाकुंभ का समापन हो गया है। सरकार ने साधु संतों से
मिलकर कुंभ स्नान के लिए जो अवधि तय की थी ,उसी निर्धारित अवधि तक महाकुंभ चला। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सांकेतिक स्नान का अनुरोध किया था, लेकर सभी अखाड़ों में सहमति नहीं बन पाई। इस दौरान अखाड़ों में दो फाड़ भी स्पष्ट रूप से देखा गया।
अभी उत्तराखंड में कोविड संक्रमण तेजी के साथ फैलने के पीछे कहीं न कहीं कुंभ का
आयोजन है। आंकड़ों का विश्लेषण करने वाले विशेषज्ञ भी प्रत्यक्ष रूप से इस बात को
स्वीकार करने लगे हैं। दरअसल, कुंभ स्नान को उस समय ही बंद कर देना चाहिए था
जब प्रधानमंत्री ने अखाड़ों के कुछ संतों से बात करके सांकेतिक स्नान करने के संकेत दिए थे। पर सरकार साधु-संतों को कुंभ का स्नान बंद कराकर उन्हें नाराज नहीं करना चाह रही थी। कुंभ स्नान के समापन की घोषणा उस समय हुई जब अंतिम शाही स्नान
संपन्न हुआ। अचरज की बात यह है कि अंतिम शाही स्नान होने के बाद सरकार ने हरिद्वार
में कोविड कर्फ्यू लगा दिया है। इसका मतलब साफ है कि सरकार की मंशा यही थी कि
हर हाल में अंतिम शाही स्नान को पूरा कराया जाए। जो कोविड कर्फ्यू पहले लगना
चाहिए था उसको अंतिम शाही स्नान पूरा होने के बाद लगाया गया। आस्था पर पहरा
कहीं से भी ठीक नहीं है।
लेकिन कोरोना अर्थात महामारी काल में सरकार को संयम से काम लेना चाहिए था। सरकारी आंकड़ों पर ही गौर किया जाए तो मालूम पड़ा कि करीब 800 से ज्यादा पुलिस वाले संक्रमित हुए हैं। विशेषज्ञों की मानें तो यह संख्या हजार से ऊपर ही जाएगी। इन पुलिस वालों ने सैकड़ों श्रद्धालुओं को भी संक्रमित किया होगा।
फिर श्रद्धालु जिन राज्यों में गये होंगे, वहां भी लोग संक्रमित हुए होंगे। विशेषज्ञों की मानें
तो कुंभ पर ब्रेक लगा दिया गया होता तो उत्तराखंड में हालात इतने ज्यादा खराब नहीं होते।सरकार बार बार आदेश जारी करती रही कि बिना मास्क वालों को दंडित किया जाएगा।
लेकिन यह आदेश महज कागजों पर अंकित होकर रह गया। सारी पुलिस फोर्स तो कुंभ
में लगी हुई थी। फिर सख्ती कौन बरतता। आशय साफ है कि सरकारी आदेश को सख्ती
के साथ क्रियान्वित नहीं कराया जा सका जिसकी वजह से कोविड तेजी के साथ फैला।
सरकार की पूरी ताकत महाकुंभ के आयोजन पर लगी रही जिसकी वजह से स्वास्थ्य
सेवाएं चरमरा र्गइं। यहां इस बात का उल्लेख करना भी जरूरी है कि उत्तराखंड में
स्वास्थ्य सेवाओं का पहले से ही खस्ता है। आज स्थिति यह है कि सरकारी और गैर-
सरकारी अस्पतालों में बेड तक नहीं हैं। कोविड सेंटरों पर चिकित्सा सुविधाएं भी पीड़ितों
को सही तरीके से नहीं मिल रही है। चौंकाने वाली बात यह है कि जीवन रक्षक दवाइयां
भी बाजार से गायब हो चुकी हैं। आक्सीजन भी नहीं मिल रहा है। वहीं, सरकार बार बार
दावा कर रही है कि आक्सीजन उपलब्ध है। प्रदेश में किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं
है। असल में दावा करने से अस्पतालों में न ही बेड मिलेंगे और न ही आक्सीजन। सरकार
को इन अव्यवस्थाओं को पटरी पर लाना होगा।
भाषण और रोजाना नये नये आदेश जारी करने से लोगों के दुःख दर्द को दूर नहीं किया जा
सकता। हमें अपनी बुनियादी सुविधाओं को मजबूत करने की दिशा में कार्य करने होंगे।
शुरुआती दौर में सरकार को इस गंभीर मसले पर ध्यान देना चाहिए था। पर लापरवाही
बरती गई। ठीक है, अब अतीत में ज्यादा ताक झांक करने की आवश्यकता नहीं है। अब
समय आ गया है कि व्यवस्थाओं को ठीक करने का। कोरोना महामारी का खात्मा अभी
नहीं हुआ है। महामारी का रौद्र रूप अब प्रकट होने लगा है। इसलिए सरकार को जन हित
में और ज्यादा सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है। बिना सख्त कदम उठाए लोग
कोविड की गाइडलाइंस का पालन नहीं करने वाले हैं। यदि लोग मास्क और दो गज की
दूरी का पालन कड़ाई से किए होते तो आज हालात बदतर नहीं होते। आज की तारीख में
सरकारी आंकड़े भी भयावह रिपोर्ट पेश कर रहे हैं। स्थिति यह है कि कोविड से मरने वालों
का स्तर भी राष्ट्रीय स्तर को स्पर्श कर चुका है। मौतें ज्यादा हो रही हैं। सरकार को इस पर
मंथन करना चाहिए। जरूरत पड़ी तो लाक डाउन लगाने में भी संकोच नहीं करना चाहिए।
इंसान को बचाना सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।