मोदी राज में ग्रामीण मज़दूरों की दुर्दशा
(आलेख : प्रभात पटनायक, अंग्रेजी से अनुवाद : राजेंद्र शर्मा)
अब तक अनेक शोधकर्ताओं द्वारा यह अच्छी तरह से साबित किया जा चुका है कि ग्रामीण भारत में मजदूरी की वास्तविक दरें, चाहे वह खेत मजदूरों का मामला हो या आम तौर पर ग्रामीण मजदूरों का, 2014-15 से 2022-23 के बीच, करीब-करीब जहां की तहां रुकी…
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