सारे धान पंसेरी के भाव मत तौलिये!
बादल सरोज
3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस था। पर कुछ गुणी और सुधी मित्रों की ऐसी टिप्पणियाँ दिखीं, जिनमें इन दिनों की पत्रकारिता का मखौल उड़ाते-उड़ाते पत्रकारों का भी उपहास जैसा किया गया लगा। यह एक तो जर्मन कहावत "दास काइंड मिट डेम बडे ऑस्चुटेन" (बच्चे को नहलाकर बाहर निकालें, नहाने के पानी…
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