मोदी और उनके कुनबे को वाम से इतना डर क्यों लगता है?
आलेख : बादल सरोज
जैसे-जैसे मतदान की तारीखें करीब आ रही हैं, जैसे-जैसे पाँव के नीचे की जमीन खिसकने का अहसास बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे सत्ता पार्टी की घबराहट बौखलाहट से सन्निपात में बदलती जाती दिखने लगी है। अब तो यह इसके एकमात्र प्रचारक नरेंद्र मोदी की धड़ाधड़ हो रही आम सभाओं में उनके बिखरे, उखड़े…
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