किसने सुना हवाओं का रोना!
डॉक्टर सुशील उपाध्याय।
जब उन्हें दबोचा, नोचा, घसीटा और परेड कराई, तब मैंने हवाओं का रुदन साफ-साफ सुना घास, पत्तों की सरसराहट में कुछ न कर पाने की तड़प थी।
श्श्निवत हो गए पांवों तले छातियां रौंदी जा रही थी, और भीड़ के गंध भरे निशान आत्मा पर दर्ज हो रहे थे, सारे के सारे घाव देह से परे के थे, इन्हीं…
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