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आलेख

संवेदना की मौत का महाकुम्भ : मदद में उठ खड़ा हुआ इलाहाबाद

बादल सरोज दुर्भाग्य से बुरी आशंकाएं सच निकली और इस बार का कुम्भ, जिसे 144 वर्ष बाद पड़ने वाला महाकुम्भ बताया जा रहा है, इतिहास में कुप्रबंधन के महामंडलेश्वरों की जकड़न, अव्यवस्था के महा-अमात्यों की निगरानी और भ्रष्टाचार के पीठाचार्यों की रहनुमाई में संवेदनाओं की मौत के मेले के रूप में दर्ज होकर…
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दिल्ली चुनाव : एक मिथक का अंत और एक त्रासदी का और बड़ा होना

 संजय पराते दिल्ली में आप पार्टी की हार से देश के पैमाने पर उसके विकल्प बनने के मिथक का अंत हो गया है, लेकिन इसने देश को एक बड़ी त्रासदी में फंसा दिया है। भाजपा की जीत से वे सभी लोग निराश हैं, जो भाजपा-आरएसएस-कॉर्पोरेट गठजोड़ के वास्तविक खतरे को समझते हैं कि यह हमारे देश के जनतंत्र की जड़ों को…
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अमेरिका प्रवासी मज़दूरों का कैसे इस्तेमाल करता है?

शिरीन अख्तर निर्वासन का शस्त्रीकरण नवउदारवादी नीतियों का हिस्सा है, जो असमानता पैदा करती है, सत्ताधारी अभिजात वर्ग के हितों की सेवा करती है, लोगों को काम की तलाश में पलायन करने के लिए मजबूर करती है और उनके आने के बाद उन्हें अपराधी बना देती है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था अप्रवासी मजदूरों के दशकों…
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आजाद हिंद फौज (आईएनए) की असाधारण विरासत

(कैप्टन अब्बास अली की स्मृति में इरफान हबीब का भाषण, अनुवाद : संजय पराते) मैं एक स्कूली छात्र था, जब आजाद हिंद फौज (आईएनए) के बारे में भारत में जानकारी पहुंची। भारतीय लोगों को आईएनए के बारे में तभी जानकारी मिली, जब जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया। सविनय अवज्ञा आंदोलन को वापस लेने के बाद मार्च…
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इधर धार्मिक नगरी का शिगूफा, उधर मद्य-प्रदेश बनता मध्यप्रदेश!

बादल सरोज शिगूफेबाजी, झांसेबाजी और पाखण्ड की कोई अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता हो, तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारतीय जनता पार्टी बिना किसी मुश्किल के विश्व विजयी होकर निकलेगी। दिनदहाड़े, खुलेआम, बिना पलक झपकाए झूठ बोलने में इसे जो सिद्धि हासिल है, वह कमाल ही है । सार्वजनिक रूप से खुद…
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महाकुंभ में त्रासदी : कुंभ के पथ में ‘हिन्दू राष्ट्र’ की पताका?

सुभाष गाताडे एक अदद त्रासदी किसी सियासतदां की समूची करियर को हमेशा के लिए गर्त में ले जा सकती है ... या कम से कम उसके कैरियर पर एक गहरा धब्बा हमेशा के लिए चस्पा कर सकती है। ‘दुनिया के सबसे बड़े समागम’ के तौर पर बताए जा रहे महाकुंभ में मौनी अमावस्या के दिन मची भगदड़ में हुई मौतें -- जिनकी…
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सवालों में नैक की ग्रेडिंग

डॉ. सुशील उपाध्याय पिछले कुछ वर्षों से यह चर्चा चल रही थी कि उच्च शिक्षा संस्थानों का मूल्यांकन एवं प्रत्यायन करने वाली संस्था NAAC द्वारा दी जाने वाली ग्रेडिंग उतनी पारदर्शी और साफ-सुथरी नहीं है, जितनी कि इसके होने की उम्मीद की जाती है। बड़ी संख्या में निजी क्षेत्र के ऐसे औसत विश्वविद्यालयों और…
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कॉर्पोरेटपरस्त बजट : बताता कम, छुपाता ज्यादा है!

संजय पराते बजट-पूर्व आर्थिक सर्वेक्षण ने 'विकसित भारत' के नाम पर निजीकरण और कॉर्पोरेटपरस्ती के जिस रास्ते की हिमायत की है, उसकी पूरी झलक आज पेश बजट में है। लेकिन हर बजट जन कल्याण के आवरण में पेश किया जाता है, वहीं कोशिश इस बार भी हुई है, इसलिए यह बजट बताता कम और छुपाता ज्यादा है। संसद में…
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24 में आजादी, 35 में हिन्दू राष्ट्र! इधर सन्निपात, उधर बारह बांट !

बादल सरोज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने अपने हिसाब से भारत के इतिहास के पुनर्लेखन में एक नया अध्याय जोड़ते हुए, इस देश की आजादी के बारे में अब तक की सारी तथ्य, सत्य, विधिसम्मत, विश्व-स्वीकृत जानकारी को झूठा करार देते हुए स्थापना दी है कि असली आजादी तो वर्ष 2024 में…
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गणतंत्र @75 : कुछ इशारे!

राजेन्द्र शर्मा बेढब तो है, पर हैरान नहीं करता है कि गणतंत्र की पूर्व-संध्या पर अपने परंपरागत संबोधन में राष्ट्रपति मुर्मू ने 'एक देश, एक चुनाव' का जी भरकर गुणगान किया। उन्होंने इसे अपनी सरकार का 'साहसपूर्ण दूरदर्शिता' का प्रयास ही करार नहीं दिया, यह दावा भी किया कि इससे 'सुशासन को नये आयाम'…
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