डाॅ. सुशील उपाध्याय
किसी भी चयन और साक्षात्कार प्रक्रिया में एक बड़ा प्रश्न यह है कि क्या केवल शैक्षिक-बौद्धिक योग्यता के आधार पर चयन हो सकता है ? इसका जवाब यह है कि चयन के लिए शैक्षिक-बौद्धिक योग्यता के साथ-साथ उसकी प्रस्तुति और डिलीवरी का कौशल भी आना चाहिए। इस साल कुछ सरकारी संस्थानों की चयन प्रक्रिया में शामिल होने के दौरान यह देखने को मिला कि अकादमिक तौर पर सुयोग्य दिख रहे उम्मीदवार इंटरव्यू के दौरान अपने तनाव को हैंडल नहीं कर पाए। कुछ तो एक भी शब्द नहीं बोल पाए या ब्लैक बोर्ड पर खड़े होते ही ब्लैक आउट का शिकार हो गए। परिणामतः उनका प्रदर्शन औसत या इससे भी न्यूनतम स्तर का रहा। आखिर वो कौन-सा तरीका हो सकता है, जिससे इंटरव्यू में निरर्थक तनाव न हो और उम्मीदवार अपनी योग्यता की सहज प्रस्तुति कर सकें। कुछ सामान्य बातें हैं, जिनका ध्यान रखा जाना चाहिए और उन्हें अभ्यास में भी लाना चाहिए।
कई बार ऐसा लग सकता है कि इंटरव्यू के लिए कोचिंग लेने से काफी मदद मिल सकती है, जबकि इसका कोई बड़ा लाभ नहीं होता। जब सारे ही उम्मीदवार कोचिंग लेने के बाद इंटरव्यू देने पहुंचते हैं तो उनका व्यवहार एकदम कृत्रिम होता है और कोचिंग में सिखाए गए स्किल से कुछ भी अलग परिस्थिति होने पर वे नियंत्रण खो बैठते हैं। ऐसे में बेहतर यह है कि खुद के स्तर पर ही तैयारी करें, इससे मौलिकता बनी रहती है। कई बार यह प्रश्न भी पूछ लिया जाता है कि इस परीक्षा और मौजूदा इंटरव्यू के लिए कोचिंग ली है ? इसके जवाब में कोचिंग का उल्लेख करने की जरूरत नहीं है, बल्कि ये कहना चाहिए कि स्वयं ही तैयारी की है और अपने कुछ शिक्षकों या सीनियरों से मदद ली है।
यह संभव है कि आप जिस बोर्ड के सामने इंटरव्यू देने गए हैं, वहां कोई ऐसा सदस्य मौजूद हो जो तनाव पैदा करने में माहिर हो। यदि आप तनाव में आ गए तो फिर तथ्य याद नहीं रह जाते और प्रस्तुति-कौशल गायब हो जाता है। तनाव उत्तेजना पैदा करता है और उत्तेजना से यह महसूस हो सकता है कि मेरा इंटरव्यू खराब हो गया है इसलिए अब कोई भी जवाब दिया जाए तो उसका कोई फायदा नहीं होगा। इससे बचने का आसान तरीका यही है कि किसी भी प्रश्न या टिप्पणी को पूरा सुने बिना उत्तर न दें और यदि प्रश्न को ठीक से नहीं समझ पाए तो उसे स्पष्ट करने का अनुरोध किए जाने में कोई बुराई नहीं है। कोशिश कीजिए कि आप किसी भी एक्सपर्ट के हाव-भाव से प्रभावित न हों। वैसे, थोड़ा-सा तनाव सभी को होता है, लेकिन इतना तनाव न हो कि इसके कारण उत्तर न दे सकें और इंटरव्यूकर्ताओं के सवालों की बौछार में फंस जाए। हालांकि बोर्ड सदस्यों की ये मंशा कभी नहीं होती कि आपको ट्रैप करके अयोग्य साबित करें, लेकिन अनचाहे भी ऐसी स्थितियां बन जाती हैं।
आपकी भाषा आपके चयन में बहुत बड़ी भूमिका निभाती है। यदि आप शिक्षक पद के लिए इंटरव्यू देने गए हैं और मातृभाषा को मात्रभाषा, सामथ्र्य को सामर्थ, भौतिक को भोतिक, कक्षा को कक्च्छा, डराना को ड्राना, कमला को कम्ला उच्चारित कर रहे हैं तो आपकी योग्यता पर संदेह पैदा होने लगता है। किसी एक शब्द को बार-बार प्रयोग करना भी अच्छा नहीं होता। केवल उच्चरित भाषा ही नहीं, बल्कि बाॅडी लैंग्वेज का भी ध्यान रखें। आंखे नीची करके बात करना, सीने पर हाथ बांध लेना, उंगलियां क्रॉस करके मेज पर हाथ रख लेना, झुककर या अतिरिक्त तौर पर तनकर बैठना, उत्तर देते वक्त अगल-बगल देखते रहना….इन सबका अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता। हिंदी के उच्चाकरण के मामले में हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के उम्मीदवारों की भाषा पर बोलियों का बहुत ज्यादा प्रभाव दिखता है। इस प्रभाव को अभ्यास के जरिये ही कम किया जा सकता है।
कुछ उम्मीदार प्रश्न का जवाब प्रतिप्रश्न में देते हैं। जैसे, उनसे पूछा जाए कि आप 12वीं कक्षा को पढ़ा लेंगे तो उत्तर होगा-क्यों नहीं! जबकि उत्तर होना चाहिए-जी, बिल्कुल पढ़ा लूंगा/लूंगी। यदि किसी प्रश्न का सही उत्तर नहीं आता तो अनुमान नहीं लगाना चाहिए। अनुमान प्रस्तुत करने को उत्तर नहीं माना जाता। बेहतर यह होगा कि मना कर दें कि आप इस बारे में नहीं जानते। उत्तर को कभी लंबा न खींचे। इससे ऐसा लगेगा कि आप टाइम बिताना चाह रहे हैं। यदि आपके उत्तर से कोई एक्सपर्ट सहमत नहीं हैं तो बहस करने से बचें। उत्तर संक्षिप्त हों, लेकिन इतना संक्षिप्त भी न हों कि गर्दन हिलाकर ही उनका जवाब दे दें। आजकल कोचिंग संस्थानों में यह सिखाया जाता है कि इंटरव्यू के दौरान या इंटरव्यू समाप्त होने पर इंटरव्यू बोर्ड की तारीफ जरूर करें। कई बार ऐसा करने का उल्टा असर पड़ता है इसलिए इस तरह की तारीफ के चक्कर में न पड़े। सभी को औपचारिक धन्यवाद कहकर बाहर जाएं।
कुछ आवेदक इतने उत्साही होते हैं कि वे सही उत्तर देने के बाद उससे जुड़ी गैरजरूरी चीजों का विस्तृत विवरण देने लगते हैं। कई बार इस विवरण में से ऐसे प्रश्न निकल आते हैं जिनका उत्तर दे पाना संभव नहीं होता। इस स्थिति में पहले दिया गया सही उत्तर अपना प्रभाव खो बैठता है। सही उत्तर को सही और सधे हुए शब्दों में प्रस्तुत करना भी एक बड़ा कौशल है। उत्तर को हमेशा अपने विषय और अपनी विशेषज्ञता के आसपास ही रखें। दूसरे विषयों या प्रकरणों में प्रवेश करने से मुश्किल में फंस सकते हैं। चूंकि, इंटरव्यू बोर्ड में पांच-छह लोग होते हैं इसलिए यह संभव नहीं है कि आप उन सभी के सभी प्रश्नों के उत्तर दे सकें या उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतर सकें। कोशिश कीजिए कि आपकी विषय संबंधी योग्यता का मूल्यांकन हो न कि बोर्ड के सामने अपनी अयोग्यता का प्रदर्शन हो जाए। इस बात को हमेशा ध्यान रखिए कि बोर्ड का मूल उद्देश्य आपके व्यक्तित्व और क्षमता का मूल्यांकन करना है न कि आपको खारिज करना।
बीते दशकों में दलित चेतना के विकास-विस्तार के बाद जाति से जुड़े प्रश्न और जाति का उल्लेख बेहद संवेदनशील मुद्दा बन गया है। ऐसे वाक्यों से बचें जिसमें कबीर जुलाहा थे, रैदास चमार थे, सुदामा गरीब ब्राह्मण थे आदि जैसा उल्लेख हो। इससे आपके बारे में यह राय बन सकती है कि आप शिक्षक के रूप में इन मुद्दों को लेकर सेन्सेटाइज नहीं है। कोई भी उत्तर प्रश्न के अनुरूप ही होना चाहिए। उसे अपनी सुविधा के लिए इधर-उधर डाइवर्ट करने की कोशिश का कोई अच्छा परिणाम नहीं निकलता। उत्तर देते वक्त शारीरिक ऊर्जा का संतुलन भी जरूरी है। जरूरत से ज्यादा उत्साही और अनावश्यक रूप से निराश दिखने से अनुकूल परिणाम की संभावना कमजोर होती है। निराश, उदास, दुखी दिख रहे लोग प्रायः पसंद नहीं किए जाते।
इस बार भारत सरकार के एक प्रतिष्ठित संस्थान के इंटरव्यू बोर्ड के दौरान एक अनूठी और अलग प्रकार की बात देखने को मिली। वो ये कि कई उम्मीदवार इंटरव्यू के बाद किसी न किसी बात को लेकर भावुक हो गए और रोने लगे। कुछ मामलों में तो ऐसा लगा कि रोने की तैयारी करके आए थे। कुछ ने कक्ष छोड़ने से पहले कुछ बात करने की अनुमति मांगी और फिर वैयक्तिक पारिवारिक परिस्थिति का जिक्र करके रो पड़े। रोने का यह क्रम पुरुषों और महिलाओं में समान रूप से दिखाई दिया। दिन भर में 20-25 लोगों के इंटरव्यू के दौरान यदि कोई एक-दो व्यक्ति भावुक हो जाए तो इसे सामान्य माना जा सकता है, लेकिन हर तीसरे-चैथे उम्मीदवार की आंखों में पानी भर आए तो इससे संदेह पैदा होता है। रोने वालों में वे भी थे, जिनका इंटरव्यू अच्छा हुआ था। शायद किसी ने ऐसा बताया हो कि भावुक होने पर चयन की संभावना बेहतर होगी। जबकि, इसका नकारात्मक असर पड़ता है। इसलिए भावुक होने से बचें और ध्यान रखें कि ऐसे वक्त पर रोने से कुछ भी हासिल नहीं होगा, बल्कि ये माना जाएगा कि आपका व्यक्तित्व मजबूत नहीं है। अलबत्ता, इसकी जगह एक काम कर सकते हैं। वो ये कि यदि बोर्ड अनुमति दे तो अपने गायन कौशल या अभिनेयता का थोड़ा प्रदर्शन कर सकते हैं। अंत में एक जरूरी बात-आपका आत्मविश्वास, विषय की समझ और परिस्थितियों को संभालने का कौशल ही मंजिल तक पहुंचाएगा। और इन सबको एक दिन में हासिल नहीं किया जा सकता। इनके लिए सतत अभ्यास की जरूरत होगी। और ये अभ्यास बोलने से लेकर बोर्ड राइटिंग करने तक फैला हुआ है।
शिक्षक चयन के इंटरव्यू में आपके विषय से इतर सामान्य तौर पर पूछे जाने वाले प्रश्न इस तरह के हो सकते हैं-
1-इन दिनों आपने ने नया क्या पढ़ा है, कोई नई किताब पढ़ रहे हैं ?
2-अपनी पसंद के किसी लेखक या कवि के बारे में बताएं, उनकी साहित्यिक विशेषताएँ क्या हैं ?
3-पढ़ने को लेकर आपकी रुचियां क्या हैं ?
4-समकालीन महिला साहित्यकारों के विषय में बताएं। (यदि आप महिला हैं तो प्रायः यह प्रश्न पूछा ही जाएगा)
5-आप कहां से आए हैं, आपके शहर/क्षेत्र की सामाजिक सांस्कृतिक विशेषताएं क्या हैं ?
6-आपके शहर/क्षेत्र में कोई प्रतिष्ठित साहित्यकार या विशिष्ट व्यक्ति हुए हैं, उनके विषय में बताएं ?
7-आपके नाम का सामान्य अर्थ क्या है, क्या इसकी कोई साहित्यिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि भी है ?
8-आपके व्यक्तित्व का सबसे मजबूत और सबसे कमजोर पक्ष क्या है ?
9-आपने कभी स्वयं का एस.डब्ल्यू.ओ.टी. (स्वाॅट) विश्लेषण किया है ? उसके निष्कर्ष बताएं।
10-आपने किस जगह या किस यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है, उसके बारे में बताएं।
11-आपने अपनी अंतिम उपाधि में कौन-से विषय या प्रश्नपत्र पढ़े हैं, उनके नाम याद हैं ?
12-शिक्षण के पेशे में क्यों आना चाहते हैं ?
13-इस पद के लिए आपको क्यों चुना जाए, अपनी सुटेबिलिटी के बारे में बताइए।
14-अभी आप जिस जगह पर काम कर रहे हैं, उसे क्यों छोड़ना/बदलना चाह रहे हैं ?
15-हिंदी के अलावा और किन भाषाओं में कार्य करने में सक्षम हैं, अंग्रेजी में सामान्य कामकाज कर सकते हैं ?
16-शिक्षण के दौरान आईसीटी टूल्स का प्रयोग कर सकते हैं, आपकी निगाह में कौन-से टूल अधिक उपयोगी हैं ?
17-क्या टेक्लोनाॅजी शिक्षक का स्थान ले सकती है, इसके बारे में आप क्या सोचते हैं ?
18-आपकी पढ़ाई में गैप क्यों है, गैप की अवधि में आपने क्या किया ? (यदि स्कूलिंग और डिग्री या दो डिग्रियों के बीच में कोई अंतराल है तो!)
19-वर्तमान में आपके विषय से संबंधित कौन-सी प्रमुख पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं ?
20-बीते दिनों की किसी ऐसी घटना या उल्लेखनीय गतिविधि के बारे में बता सकते हैं तो आपके विषय/अध्ययन क्षेत्र से संबंधित है ?
21-आप नेट या पीएच.डी. उपाधि के बाद भी सेकेंडरी एजुकेशन में क्यों आना चाहते हैं ? (यदि आप पीएच.डी. उपाधि प्राप्त हैं तो!)
(ये प्रश्न केवल नमूने के लिए हैं। इसी तरह के और भी प्रश्न पूछे जा सकते हैं। कई बार प्रश्नों का निर्धारण उम्मीदवार के सामान्य बायोडाटा से भी निर्धारित होता है। ये बायोडाटा पहले से ही इंटरव्यू बोर्ड के पास उपलब्ध होता है। बायोडाटा में किसी प्रकार का असामान्य और अप्रामाणिक विवरण नहीं देना चाहिए। इससे इंटरव्यू में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।