सुशील उपाध्याय
जून, 2013 को एक बार फिर याद कर लीजिए। दस साल हो गए हैं। हजारों लोगों का आज भी नहीं पता कि उनका क्या हुआ, बस इतना ही पता है कि वे केदारनाथ आपदा में मारे गए थे। इस साल जिस तरह बदरीनाथ और केदारनाथ में भीड़ जुटी हुई है, उससे डर लगना स्वाभाविक ही है। और ये भीड़ कम होने की बजाय रोजाना बढ़ रही है। इतनी आपाधापी भी ठीक नहीं है। थोड़ा रुक जाइये। उत्तराखंड पहाड़ी राज्य है, यहां बहुत जल्दी में ढेर सारी सुविधाएं विकसित होना संभव नहीं है। सरकार ने भले ही हर दिन के लिए यात्रियों की संख्या तय की हुई है, लेकिन इसके बावजूद स्थिति चिंताजनक है। ये जानना और समझना जरूरी है कि उत्तराखंड के चार धाम न तो मौज मस्ती की जगह हैं और न ही छुट्टियां बिताने के ठिकाने हैं। इसलिए हर संभव पहलू पर सोच-समझकर ही यहां आइये।
सरकार चाहे कितनी भी सुविधाएं उपलब्ध करा दे, लेकिन वो यहां की कठिन भौगोलिक परिस्थितियों को नहीं बदल सकती। न ही बदरी-केदार या फिर यमुनोत्री-गंगोत्री में ऑक्सीजन का लेवल बढ़ा सकती हैै। ये ऊंचाई वाले इलाके हैं, यहां ऑक्सीजन कम होगी ही। और यहां पर दिल्ली, देहरादून जैसी मेडिकल सुविधाएं भी नहीं हैं कि तबियत खराब हुई और तुरंत डाॅक्टर मिल गया। ऊपर से नीचे आने में कई घंटे का वक्त लगेगा ही और तब तक जान पर बन आती है। रास्ते जाम से अटे पड़े हैं। हेली सेवाओं के दाम सुनकर डर लगने लगेगा। ऐसे में सोचिये, कोई परेशानी हुई तो क्या होगा ! स्वास्थ्य ठीक नहीं है या कुछ वक्त पहले बीमार रहे हैं तो न आना ही बेहतर होगा।
इस साल जिस कदर लोगों की भीड़ जुट रही है, वह हर तरह से परेशान करने वाली है। ऐसा नहीं है कि चारधाम अगले महीने ही बंद हो जाएंगे। ये सभी मंदिर अगले छह महीने खुले रहेंगे। इसलिए जून में ही आने की जिद परेशानी पैदा करेगी और कर भी रही है। जबकि इन स्थानों की यात्रा के लिए सबसे सुखद समय बारिश रुकने के बाद सितंबर-अक्तूबर में होता है। या तो लोगों को जानकारी नहीं है या फिर केदारनाथ में प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत रुचि के कारण लोगों में अधीरता की स्थिति है। शायद लोगों को ऐसा लग रहा है कि केदारनाथ डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के बाद ये जगह किसी खूबसूरत हिल स्टेशन में परिवर्तित हो गई है। जबकि, ऐसा बिल्कुल नहीं है। वजह जो भी हो, लेकिन बुजुर्ग और बीमार लोगों को साथ लेकर या पूरे खानदान के साथ यात्रा करने में कोई तुक नजर नहीं आता। इसी तरह बहुत छोटे बच्चों के साथ चारधाम की यात्रा करना भी अक्ल की बात नहीं है। लोगों को समझना चाहिए कि इन स्थानों की यात्रा के साथ एक धार्मिक-दार्शनिक पहलू भी जुडा है। इसलिए मसूरी-धनोल्टी घूमने के बाद चारधाम का रुख करने की मानसिकता किसी भी दृष्टि से स्वीकार्य नहीं है।
इस यात्रा के साथ कुछ और पहलू भी जुड़े हैं। पहली बात, उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में इतनी सुविधाएं मौजूद नहीं हैं कि यहां प्रतिदिन चार-पांच लाख लोगों के आवास आदि की व्यवस्था की जा सके। जब लोगों की संख्या बढ़ती है तो होटलों, धर्मशालाओं या रहने के अन्य ठिकानों की दरें कुछ घंटों के भीतर ही दोगुनी-तिगुनी तक हो सकती है। यही स्थिति वाहन सुविधाओं की भी है। बीते एक महीने के भीतर वाहनों के रेट करीब डेढ़ गुना हो चुके हैं। इस बात पर मत जाइये कि सरकार ने क्या रेट तय किए हैं। जब मांग बढ़ती है तो रेट भी उसी के हिसाब से आसमान छूने लगते हैं। तब सरकार भी कुछ करने की स्थिति में नहीं होती। वैसे भी, सरकार के पास अपना ऐसा ढांचा नहीं है कि वो इतनी बढ़ी संख्या में सुविधाएं उपलब्ध करा सके। (चार धाम की यात्रा में आठ से दस दिन लगते हैं। हर रोज 50 हजार से ज्यादा लोग दर्शन कर रहे हैं। कुल दिनों और प्रतिदिन दर्शन करने वाले यात्रियों की संख्या के दृष्टिगत प्रदेश में हरिद्वार-ऋषिकेश से चारधाम के बीच करीब पांच लाख लोग मौजूद होते हैं।)
कई बार स्थानीय स्तर पर भी ऐसे लोग सक्रिय हो जाते हैं जो तीर्थयात्रियों को एक ऑब्जेक्ट की तरह देखते हैं। इसी का परिणाम ये होता कि दस रुपये की चाय की प्याली 25-30 रुपये की हो जाती है और खाने-पीने के अन्य सामान की कीमत ढाई-तीन गुना तक बढ़ जाती है। और यदि आप विरोध करते हैं तो फिर लडाई-झगडे का डर रहता है। इसके कई उदाहरण हरिद्वार और ऋषिकेश में देखने को मिल चुके हैं, जब यात्रियों के साथ मारपीट के वीडियो वायरल हुए हैं। बात केवल चारधाम यात्रा की ही नहीं है। सभी जगह परेशानी की स्थिति है। यदि इन दिनों, विशेषतौर पर शनिवार-रविवार को हरिद्वार-ऋषिकेश या देहरादून-मसूरी-धनोल्टी आ रहे हैं तो एक बार दोबारा सोच लीजिए। इन जगहों पर शनिवार-रविवार को हर चीज के दाम आसमान छूट रहे होते हैं। भीड़, जाम, मनमानी कीमतें और दुर्व्यवहार, ये सब मिलाकर आपकी यात्रा का कूड़ा करने के लिए काफी हैं।
अब सवाल ये है कि इस समस्या का समाधान क्या है ? इसका आसान समाधान तो यह कि हरिद्वार-ऋषिकेश या देहरादून-मसूरी-धनोल्टी का कार्यक्रम शनिवार-रविवार को बिल्कुन न बनाएं और चारधाम यात्रा की योजना को मई-जून से आगे खिसकाकर सितंबर-अक्तूबर में कर दीजिए। उस वक्त पहाड़ ज्यादा हरे-भरे और खूबसूरत होते हैं। भीड़ नियंत्रित हो चुकी होती है इसलिए सुविधाओं और सामानों के दाम भी स्थिर हो जाते हैं। बाबा बदरी और केदार का आशीर्वाद तब भी इतना ही मिलेगा, जितना कि जून के महीने में मिल रहा है।
सरकार ने भी एडवाइजरी जारी की है कि बीमार और वृद्ध लोगों को लेकर चार धाम न आए। बेहतर होगा कि किसी भरोसेमंद एजेंट आदि के माध्यम से यात्रा की व्यवस्था पहले से ही कर लें। हर स्तर पर सावधानी जरूरी है क्योंकि आॅनलाइन ठगी के मामले भी लगातार सामने आ रहे हैं। महज पिकनिक मनाने न आए। हरिद्वार, ऋषिकेश और चारधाम में ज्यादातर एरिया ड्राई एरिया है इसलिए ठंडे इलाकों में पार्टी करने की मंशा को घर पर ही छोड़कर आए। चूंकि कोरोना के कारण दो साल यात्रा नहीं हो सकी इसलिए बीते दो साल से काफी ज्यादा भीड़ आ रही है। बेहतर होगा कि भीड़ कम होने की प्रतीक्षा करें। इन तमाम बातों का मकसद आपको डराना नहीं है, बल्कि जागरूक करना है ताकि धार्मिक यात्रा का आनंद ले सकें और कड़वे अनुभवों से बचते हुए घर वापस पहुंच सकें।
और हां, पर्यावरणविद चंडीप्रसाद भट्ट की चेतावनी याद रखिए कि आपदाएं खुद को दोहराती हैं। वे न सरकार से डरती हैं और न श्रद्धालुओं के जयकारे से।