- जब कोरोना के खिलाफ रणनीति बनानी थी, तब सरकारों ने कुछ किया ही नहीं। अब जब पूरे देश में संक्रमण फैल गया है तो सरकारें भी तरह-तरह की कहानियां सुना रहीं हैं। अब आम आदमी को आगे आना होगा…
रणविजय सिंह
बेकाबू होते कोरोना के सामने केंद्र के साथ ही अब राज्य सरकारें भी असहाय दिख रही हैं। इस बीच सरकारों पर बेकाबू हो रहे कोरोना को लेकर हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक काफी सख्त हो गया है। पर सरकारें भी अब बेबस हैं। सरकारों की लाचारी को समझा जा सकता है। दरअसल, जब कोरोना के खिलाफ रणनीति बनानी थी, तब सरकारों ने कुछ किया ही नहीं। अब जब पूरे देश में संक्रमण फैल गया है तो सरकारें भी तरह-तरह की कहानियां सुना रहीं हैं। अब आम आदमी को आगे आना होगा।
कोविड कर्फ्यू हो या फिर लॉक डाउन लोगों को कोरोना से बचाव के लिए जारी गाइडलाइन का पालन करना चाहिए। गाइडलाइन का पालन करने में किसी की भी जेब ढीली नहीं हो रही है।
मास्क और दो गज की दूरी पर अमल करना है। सैनिटाइजर नहीं है तो साबुन से हाथ धोना है। गर्म पानी का सेवन करना है। भाप लेना है। इन सब चीजों को अमल में लाने के लिए बहुत ज्यादा पैसा खर्च नहीं करने पड़ते हैं। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि आम आदमी इसका पालन नहीं कर रहा है।
जिसकी वजह से कोरोना तेजी के साथ फैल रहा है। आम लोगों को यह भूल जाना चाहिए कि सरकार का कोई नुमाइंदा घर आकर गर्म पानी देगा और योग व्यायाम करने को कहेगा। शुरू में ही बता दिया गया है कि अब सरकार बेबस है। कोरोना की जंग से इंसान को खुद ही लड़ना होगा। इंसान खुद पर ही भरोसा कर ले तो वह बड़ी से बड़ी महामारी को काबू में कर सकता है। प्लेग पर लोगों ने ही काबू पाया। उस जमाने में चिकित्सा व्यवस्था काफी कमजोर थी। फिर भी सफलता मिली। आज तो दवा और इलाज मिल भी रहा है।
मतलब साफ है कि हमें खुद ही अलर्ट होकर कोरोना से बचाव करना होगा। दिमाग में यह भ्रम नहीं पालना चाहिए कि सरकार ने यह कर दिया होता, वह कर दिया होता तो फलां फलां की जान बच गई होती। अब समय आ गया है कि इंसान खुद पर भरोसा करे। सरकार करने की स्थिति में होती तो जरूर करती। कोई भी सरकार नहीं चाहती है कि लोग बेमौत मरें। इतनी बड़ी आबादी है, अब सबके घर तो सरकार दवा लेकर नहीं पहुंच सकती। सरकार ने खुद कबूल कर लिया है कि उसे पता ही नहीं था कि देश में दूसरी लहर भी आएगी। सरकार ने व्यवस्था की होती तो आज लाशों का ढेर नहीं दिखाई पड़ते और न ही गंगा में लावारिस शव फेंके जाते। इतना ही नहीं, केंद्र और राज्य सरकारों को कोर्ट की फटकार भी नहीं सुननी पड़ती। यह बड़ी हास्यास्पद स्थिति है कि कोर्ट को स्वतः संज्ञान लेना पड़ रहा है। इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है।
सरकार से चूक हुई है, इसमें कोई संदेह किसी को नहीं है और उससे भी बड़ी चूक आम आदमी सरकारी गाइडलाइन का पालन नहीं करके कर रहा है। कोरोना अब बहुरूपिया हो गया है। हर आदमी जानता है। यह भी जानता है कि ब्लैक फंगस ने भी दस्तक दे दी है। फिर आदमी अपनी धुन में है। बस, सरकार को कोसना इंसान की फितरत हो गई है। बड़ी आबादी वाला यह देश है। इसमें सभी को सतर्क रहना होगा। वरना आने वाले दिनों में गलियां लाशों से पट जाएंगी। इसलिए अलर्ट रहिए, मस्त रहिए। सब कुछ ठीक होगा। खुशहाली लौटेगी। लेकिन सरकार गाइडलाइन का पालन कीजिए।
शुरू में लोगों ने वैक्सीन नहीं लगाया। अब लोगों ने थोड़ी बहुत रुचि दिखाई है तो वैक्सीन भी कम पड़ने लगी है। सरकार की कोषिष है कि वैक्सीन सबको लगे, लेकिन इसमें वक्त लगेगा। इसलिए किसी को भी हताश होने की जरूरत नहीं है। बस, धैर्य रखना होगा। अब तो विदेशी टीका स्पूतनिक भी आ गया है। इसकी खासियत है कि एक डोज ही कोरोना को भगाने के लिए काफी है। वैक्सीन के लिए भी मारामारी की जरूरत नहीं है। बस, इंतजार कीजिए, अपनी बारी का। हां, वैक्सीन लगने के बाद भी गाइडलाइन का पालन कीजिए। क्योंकि यह तो लंबे समय तक करना होगा।