- विधानसभा चुनाव में ममता ने देश-दुनिया में एक सशक्त पहचान बनाई
- भाजपा की आंधी में जिस तरह उभरी, उससे अन्य पार्टियों को सीख लेने की जरूरत
कृति सिंह
नई दिल्ली।पश्चिम बंगाल में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी
की छवि एक सशक्त नेता के रूप में उभरी है। जिसकी जरूरत आज अपने मुल्क में है।
ममता बनर्जी ने जिस तरह से भाजपा के हमलों का जवाब दिया, उससे विपक्षी नेताओं को
भी सबक लेने की जरूरत है। खासकर, कांग्रेस के राहुल गांधी, सपा के अखिलेश यादव
और राजद के तेजस्वी यादव जैसे नेताओं को सबक लेना चाहिए। पश्चिम बंगाल के सिंगूर
और नंदीग्राम आंदोलन से उपजी ममता बनर्जी ने गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के ‘एकला
चलो’ के फार्मूले को अपनाया जिसकी वजह से ममता बनर्जी ने भाजपा की आंधी में
तृणमूल की मशाल को जलाए रखा।
पश्चिम बंगाल में भाजपा की आंधी का मतलब चुनाव प्रचार की आंधी से है। सच्चाई तो
यह है कि पश्चिम बंगाल में तृणमूल की आंधी चली है। चुनाव प्रचार की आंधी भाजपा की
थी जिसमें केंद्रीय मंत्री से लेकर कई स्टार प्रचारक औंधे मुंह गिरे हैं। इसके अलावा
भाजपा ने बांग्ला फिल्म से जुड़ी अभिनेत्रियों को भी चुनाव मैदान में उतारा, पर ममता की
आंधी ने सभी को धराशाई कर दिया है। खास बात यह है कि ममता बनर्जी ने अकेले ही
भाजपा और उसकी टीम का मुकाबला किया। ममता बनर्जी आंदोलन से निकली नेता हैं।
उन्हें पता है कि अकेले राजनीतिक जंग कैसे लड़ा जाता है। वामफ्रंट की मजबूत सत्ता को
उखाड़ फेंकने में ममता बनर्जी की भूमिका काफी अहम रही है। यह तो सभी जानते हैं।
वामपंथियों की प्रताड़ना और जानलेवा हमलों को भी ममता ने झेला है। विधानसभा
चुनाव में हवाई चप्पल और सफेद रंग की साड़ी में ममता ने पूरे बंगाल में मतदाताओं के
सामने तृणमूल का पक्ष रखा और लोगों ने ममता बनर्जी की पीड़ा को महसूस भी किया।
अब विपक्ष के नेताओं को भी यह समझना चाहिए कि ममता बनर्जी ने महिला होते हुए भी
सबको धूल चटा दिया जिसकी उम्मीद किसी को भी नहीं थी।
इतना तो तय है कि वर्तमान में ममता बनर्जी राष्ट्रीय स्तर की नेता के रूप में उभरी हैं।
विपक्ष को ममता बनर्जी की तरह एक ऐसा चेहरा मिला है जो कभी भी झुकना नहीं
जानता है। अब विपक्षी नेताओं को ममता बनर्जी के साथ मिलकर काम करना चाहिए।
देश में विपक्ष के पास ममता से बड़ा कोई चेहरा नहीं दिख रहा है। हालांकि, राजनीतिक
विश्लेषक मानते हैं कि विपक्ष में बडे़ चेहरे के लिए भी अब होड़ मच सकती है। या फिर यूं
कहा जाए कि विपक्षी नेताओं में प्रतिस्पर्धा दिख सकती है। आज देश में विपक्ष का स्थान
रिक्त है। ऐसे में ममता बनर्जी की राष्ट्रीय नेता के रूप में स्वीकार्यता बढ़ सकती है। क्योंकि
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने इस चुनाव में सब कुछ झेला है। आगामी लोकसभा
चुनाव हांे या फिर अन्य राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव हों, इसमें विपक्ष के
नेताओं को ममता बनर्जी की स्टाइल में एक्शन लेना होगा, ऐसी स्थिति की रूपरेखा तैयार
होने पर भाजपा को चहुंओर घेरने में कामयाबी मिल सकती है। विपक्षी एकता के लिए
कोशिश करनी होगी और इसके प्रयास भी अतीत में हुए हैं, भले ही परिणाम सकारात्मक
नहीं रहे हैं। पर एकता के प्रयास तो हुए हैं।
पिछले चुनाव में बिहार में जदयू और राजद जैसे विरोधी दलों का एकजुट होना, उत्तरप्रदेश
में एक-दूसरे की दुश्मन सपा और बसपा का हाथ मिलाना, असम में कांग्रेस और
एआईयूडीएफ का एक होना जैसे कुछ महत्वपूर्ण उदाहरण भी हैं। हालांकि, बिहार को
छोड़कर कोई समीकरण भाजपा के जादू के सामने नहीं टिक सका। पश्चिम बंगाल के
चुनाव में कटु वार और तीखे बोल हावी रहे। सियासी कड़वाहट और खटास का बोलबाला
पश्चिम बंगाल के चुनाव में दिखा। बहरहाल, पश्चिम बंगाल के चुनाव परिणाम से यह बात
साफ हो गई है कि कोई साथ दे या न दे, इरादा पक्का हो तो विजय पाने के लिए अकेले
भी निकला जा सकता है। इसी पथ को ममता बनर्जी ने भी चुना और बंगाल की सत्ता
तीसरी बार उनके हाथ में आ गई।