इस बात में कोई दो राय नहीं है कि हमारी सरकार से अति आत्मविश्वास के चलते भारी चूक हुई है। शीर्ष नेतृत्व को अपनी गलती पर पर्दा डालने की बजाय आगे बढ़कर भूल को स्वीकार करते हुए लोगों की जान बचाने के लिए जो भी करना चाहिए वो शीघ अतिशीघ्र करना चाहिए। विपक्ष को भी महामारी के इस दौर में राजनीति करने की बजाय सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम चाहिए…
धर्मपाल धनखड़
कोरोना के चलते हालात ना केवल बेकाबू हो रहे हैं, बल्कि विस्फोटक बन गये हैं। देश में रोजाना संक्रमण के 4 लाख से ज्यादा नये मामले पाये जा रहे हैं, जो विश्व में सर्वाधिक है। विगत एक हफ्ते के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि दुनिया के संक्रमितों में हर दूसरा और मरने वालों में हर चैथा आदमी भारतीय है। संतोष की बात ये है कि रोजाना करीब तीन लाख लोग ठीक भी हो रहे हैं। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर पहली से काफी ज्यादा तेजी से फैलने वाली है और उससे कहीं ज्यादा घातक भी।
कोरोना की पहली लहर में मरने वालों में वृद्धों की संख्या ज्यादा थी तो इस बार बड़ी संख्या में युवा इसका शिकार हो रहे हैं। कोराना मरीजों के लिए अस्पतालों में बेड कम पड़ रहे हैं। आक्सीजन की कमी से रोजाना बड़ी संख्या में मरीज दम तोड़ रहे हैं। श्मशान घाटों में शवों के अंतिम संस्कार के लिए लंबी प्रतीक्षा करनी पड़ रही है। उम्मीद है कि अगले दस-पंद्रह दिन में ऑक्सीजन की आपूर्ति में सुधार हो जाये। जीवन रक्षक दवाएं और उपकरण बाजार से गायब हैं। मुनाफाखोरी चरम पर है।
रेमडेसिविर इंजेक्शन को लेकर चल रही महामारी कम नहीं हो रही है। इंजेक्शन की बड़े पैमाने पर कालाबाजारी धड़ल्ले से जारी है। मार्केट में 4800 रुपये में मिलने वाला रेमडेसिविर इंजेक्शन तीस से चालीस हजार रुपए तक में बिक रहा है। अपने परिजनों की जान बचाने को लोग खरीद भी रहे हैं। कोरोना के चलते जो हाय-तौबा मची हुई है उसे देखकर लगता है कि ना केवल स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा बुरी तरह चरमरा गया है, बल्कि पूरा सिस्टम ही फेल हो गया है।
कोरोना की दूसरी लहर के बारे में चार महीने पहले वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी थी। लेकिन अधिकारियों ने इसे अनदेखा कर दिया। देश के स्वास्थ्य मंत्री ने मार्च में कोरोना खत्म होने की घोषणा कर दी थी। दूसरी लहर की जानकारी होने के बावजूद स्वास्थ्य के ढांचे को मजबूत करने की बजाय केंद्रीय नेतृत्व चुनावी रैलियों के आयोजन में व्यस्त रहा। बड़े नेता रैलियों में सरेआम कोरोना नियमों की धज्जियां उड़ाते रहे और चुनाव आयोग मूक दर्शक बना रहा। नये संक्रमितों और मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ती रही। कोरोना विस्फोट को देखते हुए चुनाव आयोग को बड़ी-बड़ी रैलियों की बजाय प्रचार के दूसरे विकल्पों पर जोर देना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। तमाम राजनीतिक दल सत्ता की हवस में लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ करते रहे। अंतिम दौर में विरोधी दलों के नेताओं के रैलियां रद्द करने की घोषणाओं के दबाव में केंद्र में सत्तारूढ़ दल ने भी बड़े आयोजन स्थगित करके वर्चुअल रैली का विकल्प अपनाया। लेकिन तब तक हालात बेकाबू हो चुके थे। हरिद्वार में चल रहे महाकुंभ को लेकर भी सरकार बेपरवाह बनी रही।
एक तरफ राज्य सरकार ज्यादा से ज्यादा संख्या में लोगों को कुंभ स्नान के लिए आमंत्रित कर रही थी, दूसरी तरफ साधु-संत और सत्तारूढ़ दल के कुछ नेता कुंभ स्नान से कोरोना नष्ट होने के मूर्खतापूर्ण बयान दे रहे थे। आपदा को देखते हुए कुंभ जैसे विशाल आयोजन पर रोक लगा देनी चाहिए थी या फिर सांकेतिक कर देना चाहिए था।
वहीं, यूपी में पंचायत चुनाव संपन्न करवाने वाले सैकड़ों कर्मचारियों की कोरोना से मौत की खबरें दिल दहलाने वाली हैं।पहली लहर के बाद भारत महामारी के खिलाफ एक अजेय योद्धा की तरह उभरा था। निःसंदेह पूरी दुनिया को कोरोनारोधी वैक्सीन देकर भारत ने मानवता की बड़ी सेवा की है। लेकिन वैक्सीन डिप्लोमेसी के फेर में हम अपने लोगों के लिए पर्याप्त वैक्सीन उपलब्ध नहीं करवा सके। केंद्र और राज्य सरकारों की ढिलाई, शीर्ष नेतृत्व में इच्छा शक्ति का अभाव और आम जनता की अपने जीवन के प्रति लापरवाही आज देश पर भारी पड़ रही है। दूसरी लहर ने ना केवल हमारी स्वास्थ्य सेवाओं के रूग्ण ढांचे की पोल खोल दी है, बल्कि आज हम दुनिया के सामने एक निरीह और बेबस देश के रूप में खड़े हैं।
छोटे-छोटे देश मदद के लिए हाथ बढ़ा रहे हैं। विश्व की महाशक्ति बनने का सपना देखने वाले देश के लिए ये बड़ी दुखद और दयनीय स्थिति है। इस बीच वैक्सीन बनाने वाली कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट के प्रमुख अदार पूनावाला के देश छोड़कर चले जाने की घटना से भारतीय राजनीति का एक अलग ही चेहरा सामने आया है।
पूनावाला ने विदेशी मीडिया को बताया कि उन्हें भारत में शक्तिशाली लोग पहले वैक्सीन उपलब्ध करवाने के लिए धमकियां दे रहे थे। धमकियां देने वालों में कई प्रदेशों के मुख्यमंत्री भी शामिल हैं। यदि अदार पूनावाला के आरोप सही हैं तो यह निश्चित ही हमारे लिए राष्ट्रीय शर्म का विषय है। इसकी उच्च स्तरीय जांच करवायी जानी चाहिए।
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि हमारी सरकार से अति आत्मविश्वास के चलते भारी चूक हुई है। शीर्ष नेतृत्व को अपनी गलती पर पर्दा डालने की बजाय आगे बढ़कर भूल को स्वीकार करते हुए लोगों की जान बचाने के लिए जो भी करना चाहिए वो शीघ अतिशीघ्र करना चाहिए। विपक्ष को भी महामारी के इस दौर में राजनीति करने की बजाय सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम चाहिए। सत्ता पक्ष के नेताओं को भी श्रेय लेने या अपने नजदीकियों को जल्द और ज्यादा फायदा अथवा मदद पहुंचाने की नीति को त्याग कर निस्वार्थ भाव से काम करना चाहिए।
सरकार को सबसे पहले आपदा को अवसर समझ कर कालाबाजारी करने वालों से सख्ती से निपटना चाहिए। जरूरी सामान और जीवन रक्षक दवाओं तथा उपकरणों की उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए। साथ ही, उपलब्ध संसाधनों का समुचित उपयोग सुनिश्चित करना चाहिए। हमें पूरा विश्वास है कि भारतीय समाज अनेकता में एकता की उक्ति को चरितार्थ करते हुए परस्पर भाईचारे और आपसी मदद से महामारी के महासंकट पर जल्द ही विजय हासिल कर लेगा।