अंतर्कलह से हारी कांग्रेस

सल्ट उप चुनाव 2021

  • गंगा की हार से हरीश रावत को लगा बड़ा झटका
  • राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो रणजीत की नाराजगी भी वजह

अमर श्रीकांत

देहरादूनः सल्ट उप चुनाव में कांग्रेस की उम्मीदवार गंगा पंचोली की हार ने यह साबित कर दिया है  कि वहां कांग्रेसियों में एकजुटता नहीं थी जिसकी वजह से पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। गंगा के समर्थन में पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत वट वृक्ष की  तरह शुरू से ही खड़े रहे।

टिकट आवंटन में भी हरीश रावत की भूमिका महत्वपूर्ण रही। हां, यह सच है कि गंगा की हार से सबसे बड़ा झटका हरीश रावत को ही लगा है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो गंगा की हार से अब हरीश रावत का भी आंकलन कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व करेगा। गंगा को टिकट दिलवाने में हरीश रावत ने एड़ी चोटी का जोर लगाया था।

गंगा पंचोली को टिकट दिलवाने में हरीश की भूमिका

यह सच्चाई है कि गंगा पंचोली को टिकट दिलवाने में हरीश रावत की भूमिका काफीमहत्वपूर्ण रही है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो यदि कांग्रेस का हर धड ने संयुक्त रूप से मिलकर भाजपा का मुकाबला किया होता तो निश्चित रूप से चुनाव परिणाम कुछ और ही होते। या फिर हार-जीत का अंतर कम होता। हरीश रावत के करीबी रहे रणजीत रावत ने शुरू से ही गंगा का विरोध किया। रणजीत रावत ने चुनाव के दौरान दूरी बना ली। यह बात सबको पता है कि रणजीत रावत इस उप चुनाव में अपने बेटे को चुनाव मैदान में उतारना चाह रहे थे लेकिन अपने बेटे को टिकट दिलवाने में कामयाब नहीं हो पाए। इसके पीछे हरीश रावत की भूमिका महत्वपूर्ण रही है।

सोनिया गांधी ने वही किया जो हरीश रावत ने कहा। हरीश रावत ने गंगा के पक्ष में बैटिंग की और टिकट दिलवाने में कामयाब भी रहे। ऐन समय पर हरीश रावत कोरोना की चपेट में आ गए। हालांकि, चुनाव प्रचार के अंतिम दिन गंगा के समर्थन में प्रचार करने जरूर पहुंचे। लेकिन तब तक काफी देर हो गई थी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि हरीश रावत धुआंधार गंगा के प्रचार में जुटते तो भी काफी हद तक मतदाताओं के गंगा के पक्ष में प्रभावित कर सकते थे। लेकिन तबियत ठीक नहीं होने के कारण हरीश रावत सल्ट उप चुनाव में प्रचार नहीं कर पाये।

कांग्रेस आलाकमान भी समझ रहा है कि गंगा की हार के पीछे कांग्रेस का आपसी अंतर्द्वंद्व ही है। अब सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या हरीश रावत का पाॅलिटिकल करियर खत्म हो गया। कांग्रेस में हरीश रावत का विरोधी गुट अब सक्रिय हो जाएगा और चाहेगा कि हरीश रावत को अब आगे बढ़ाने से रोका जाए। क्योंकि कांग्रेस में हरीश रावत के विरोधी भी यह समझ रहे हैं कि तत्काल प्रभाव से हरीश रावत पर लगाम नहीं लगाया गया तो वर्ष 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में फिर हरीश रावत की चलेगी। क्योंकि हरीश रावत का कद अब भी बड़ा है। कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व सोनिया गांधी हों या फिर राहुल गांधी सभी हरीश रावत पर ही भरोसा करते हैं।

हरीश रावत की पकड़ पूरे उत्तराखंड में

यह भी सच है कि उत्तराखंड कांग्रेस में एकमात्र हरीश रावत ही एकलौता ऐसे नेता हैं जिनकी पकड़ पूरे उत्तराखंड में है। आज भी हरीश का राजनीतिक चमक बरकरार है। क्योंकि हरीश रावत के समकक्ष कांग्रेस में कोई नेता ही नहीं है। कांग्रेस में गुटबाजी काफी तेज है और अब तो सल्ट उप चुनाव के परिणाम घोषित होने के बाद हरीश रावत के विरोधी और ज्यादा देहरादून से दिल्ली तक सक्रिय हो जाएंगे। ऐसे में अब आने वाला समय ही तय करेगा कि उत्तराखंड में हरीश रावत की क्या भूमिका होगी। विशेष रूप से वर्ष 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में।

‘हार-जीत तो लगा ही रहता है। वर्ष 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस आलाकमान जो भी जिम्मेदारी सौंपेगा, उसका निर्वाह करूंगा। कांग्रेस जनाधार वाली पार्टी है। कांग्रेस की लोकप्रियता बरकरार है हरीश रावत, पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तराखंड

भाजपा के हौसले बुलंद

सल्ट उप चुनाव में कामयाबी मिलने के बाद  के भाजपाइयों के हौसले बुलंदी पर हैं। अब तो गंगोत्री में भी उप चुनाव होंगे क्योंकि वहां के विधायक गोपाल सिंह रावत की मृत्यु हो जाने के बाद उनकी सीट रिक्त हुई है। भाजपा तो चाहेगी कि बिना देर किए गंगोत्री विधानसभा के लिए भी उप चुनाव करा दिए जाएं। पर गंगोत्री में उप चुनाव होंगे या नहीं यह सब भाजपा हाईकमान तय करेगा।

प्रदेश में समय पर चुनाव होंगे या फिर समय से पहले होंगे, इसको लेकर देहरादून से दिल्ली तक अफवाहों का बाजार काफी गर्म है। खैर, सल्ट उप चुनाव में भाजपा को मिली कामयाबी ने मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत और उत्तराखंड भाजपा के अध्यक्ष मदन कौशिक दोनों के ही कद को न केवल बढ़ाया है बल्कि यह संकेत भी दे दिया है कि वर्ष 2022 में होने वाले चुनाव के लिए भाजपा पूरी तरह से तैयार है। हां, उप चुनाव में सफलता मिलने के बाद भाजपाई तो खुश होंगे ही और भाजपाइयों का खुश होना लाजिमी भी है। लेकिन

राजनीति के जानकार यह मानते हैं कि भाजपा के कैडरों को ज्यादा खुश होने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि सल्ट उप चुनाव में कांग्रेस की हार के पीछे कई कारण रहे हैं। यह बात भाजपा के सभी वरिष्ठ नेताओं को पता भी है।

दरअसल, कांग्रेस की हार के पीछे पार्टी के नेताओं में आपसी सिर फुटव्वल भी काफी हद तक जिम्मेदार है। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को यह समझना चाहिए कि वर्ष 2022 में पूरे उत्तराखंड में चुनाव होंगे। जो भाजपा के लिए आसान नहीं होगा। क्योंकि भाजपा में भी अंतर्कलह कम नहीं है। भाजपा के पार्टी अध्यक्ष मदन कौशिक भी नये हैं। अभी उस तरह की पकड़ मदन कौशिक पूरे प्रदेश में नहीं बना पाए हैं। कौशिक सुलझे हुए राजनीतिज्ञ जरूर हैं, पर उन्हें भी कुमाऊं और गढ़वाल के समीकरण को समझना होगा। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की छवि साफ सुथरी है। पर उनके पास भी समय कम है। हर विधानसभा क्षेत्रों की अपनी अपनी समस्याएं भी हैं। मुख्यमंत्री को इन समस्याओं का समाधान भी कम समय के अंदर ही करना है। इसके अलावा मुख्यमंत्री को पार्टी के अंदर विरोधियों को भी साधना होगा। क्योंकि उत्तराखंड भाजपा की परंपरा रही है कि जो व्यक्ति गद्दी पर बैठा है उसको उतार कर गद्दी हथियाने की। इसलिए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को ज्यादा अलर्ट होकर काम करना होगा।

‘भाजपा वर्ष 2022 में होने वाले चुनाव के लिए पूरी तरह से तैयार है। भाजपा की सरकार बढ़िया काम कर रही है। कांग्रेस तो धराशाई हो गई है। सरकार ने जो काम किया है, उन्हीं कामों को लेकर पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव में जनता के बीच जाएगी।-मदन कौशिक, अध्यक्ष उत्तराखंड भाजपा

 

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