- कृषि कानून वापस नहीं लेने तक किसान बार्डर छोड़ने को तैयार नहीं
- पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव के बाद केंद्र सरकार से फैसले की आस
हरियाणा में केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन जारी है। हिसार के आठ युवा किसानों ने तो डिप्टी कमिश्नर के माध्यम से राष्ट्रपति को चिट्ठी भेज कर इच्छा मृत्यु तक की मांग कर डाली है। किसानों की तरफ से भाजपा-जजपा के विधायकों का बहिष्कार भी जारी है। ऐसी स्थिति में मंत्रियों और विधायकों का गांवों में घुसना मुश्किल हो गया है। न वे किसी योजना का नींव पत्थर रख सकते हैं और न ही कहीं उद्घाटन कर पा रहे हैं।
खुद मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने हाल में अपनी सरकार की ‘सबका साथ, सबका विकास’ की प्रतिबद्धता को दोहराते हुए प्रदेशवासियों को शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, जल, खेल, बिजली आदि से जुड़ी 1,411 करोड़ रुपए की परियोजनाएं समर्पित की हैं। चंडीगढ़ में आयोजित राज्य स्तरीय कार्यक्रम में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उन्होंने राज्य के 21 जिलों में 163 परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया। इनमें 475 करोड़ रुपये की लागत वाली 80 परियोजनाओं का उद्घाटन और 935 करोड़ रुपये की 83 परियोजनाओं के शिलान्यास शामिल हैं।
करोड़ों रुपये की परियोजनाओं को समर्पित कर के खट्टर ने यह संदेश दिया है कि राज्य सरकार प्रदेश के समुचित और सारे क्षेत्रों का एक समान विकास करने की नीति पर चल रही है। अब उन्होंने राज्य को जो सौगात दी है, उनसे हरियाणा विकास के पथ पर और आगे बढ़ेगा। दरअसल, यदि हरियाणा में किसान आंदोलन नहीं होता तो मुख्यमंत्री हर जिले में जाते और लोगों के बीच इन योजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन करते, लेकिन हालात अभी इसके अनुकूल नहीं हैं। ऐसे में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से ही काम चलाया जा रहा है।
मौजूदा स्थिति सत्तारूढ़ दल के लिए अच्छी नहीं है, यह बात मुख्यमंत्री खट्टर के साथ ही उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला भी समझ रहे हैं। यही वजह है कि विधानसभा के बजट सत्र में मुख्यमंत्री ने एक पंक्ति का प्रस्ताव पेश किया था कि समाज का कोई भी वर्ग या संगठन किसी राजनीतिक पार्टी के नेता का बहिष्कार (बॉयकॉट) की घोषणा करता है तो यह सदन उसकी निंदा करता है। हालांकि, विपक्ष के नेता भूपेन्द्र सिंह हुड्डा इस प्रस्ताव से सहमत नहीं थे। उनका मानना था कि लोकतंत्र में आंदोलन और असहमति जताने का अधिकार सभी को है। उन्होंने सदन में स्पष्ट किया कि कांग्रेस पार्टी का कोई भी विधायक, किसी किसान संगठन या किसी वर्ग को राजनेताओं के बहिष्कार के लिए न तो उकसा रहा है और न ही कभी किसी को उकसाएगा। लेकिन इस निंदा प्रस्ताव का नतीजा क्या निकला? उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला को फरीदाबाद जिले के नरियाला गांव में विरोध का सामना करना पड़ा। माहौल उस वक्त तनावपूर्ण हो गया था, जब समारोह में किसान प्रदेश के उप मुख्यमंत्री चौटाला के विरोध के लिए पहुंच गए। यहां नाराज किसानों ने दुष्यंत को काले झंडे दिखाए। पुलिस ने वक्त रहते हालात पर काबू पाया और कई प्रदर्शनकारी किसानों को गिरफ्तार कर लिया।
भारतीय किसान यूनियन के नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने लोगों से कहा है कि वे उन्हें मंत्रियों और विधायकों के कार्यक्रमों की जानकारी दें, ताकि वे रात के अंधेरे में भी किसी गांव में उद्घाटन या शिलान्यास नहीं कर पाएं। सूचना देने वाले लोगों को यूनियन ने इनाम देने का भी ऐलान किया है। सच तो यही है कि पिछले सौ से ज्यादा दिनों से मंत्रियों और विधायकों के दौरे बंद हैं। सब जानते हैं कि करनाल जिले के कैमला गांव में मुख्यमंत्री खट्टर किसान पंचायत नहीं कर पाए थे। उनका हेलीकॉप्टर सभा स्थल तक पहुंचा जरूर, लेकिन एक चक्कर लगा कर वापस लौट गया। नाराज किसानों ने हेलीपैड भी उखाड़ दिया। इसी तरह उप मुख्यमंत्री चौटाला का उचाना में बनाया गया हेलीपैड भी क्षतिग्रस्त कर दिया गया था। ऐसे में चौटाला ने अपना दौरा रद्द कर दिया था। ऐसा नहीं है कि खट्टर सरकार किसानों की नाराजगी खत्म नहीं करना चाहती। किसानों को राजी करने के मकसद से ही खट्टर सरकार एपीएमसी (एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटी) अधिनियम में बदलाव के लिए राजी हुई थी। सदन में इसके लिए खट्टर ने हां करते हुए कहा था कि वे किसानों के हित में एपीएमसी अधिनियम से कुछ प्रावधान हटाने को तैयार हैं।
किसान आंदोलन के मद्देनजर इसे खट्टर का एक बड़ा दांव माना गया था। इससे पहले विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा इसी मुद्दे पर सदन में एक निजी विधेयक लाए थे, लेकिन तकनीकी कारणों से इसे स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता ने रद्द कर दिया था। खट्टर ने यह भी कहा था कि पूरा सदन एकमत हो तो इस मामले में कानून के जानकार सदस्यों की एक पांच सदस्यीय समिति गठित की जा सकती है। समिति की जो भी सिफारिशें होंगी, उनके अनुसार आगे कदम उठाए जा सकते हैं। विपक्ष के नेता हुड्डा ने भी खट्टर के इस प्रस्ताव का समर्थन किया। समिति के गठन के सिलसिले में खट्टर ने पांच सदस्यों के नाम लिए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस से भारत भूषण बत्रा व किरण चौधरी, भाजपा से डॉ. अभय यादव व सुधीर सिंगला और जजपा से रामकुमार गौतम को समिति में शामिल किया जा सकता है।
साथ ही, खट्टर ने आशंका जाहिर करते हुए कहा था कि एपीएमसी के सेक्शन-42 को हटाने से कहीं ऐसा नहीं हो कि किसान जमीन के मामलों में कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटता रह जाएं। समिति में शामिल सदस्यों को इस मुद्दे पर विचार-विमर्श कर ऐसा रास्ता सुझाना होगा, जिससे किसानों का भला हो सके। लेकिन खट्टर का यह दांव चला नहीं। कांग्रेस की विधायक किरण चौधरी और भारत भूषण बत्रा ने यह कहते हुए समिति से इस्तीफे दे दिए कि जब मुख्यमंत्री कह चुके हैं कि कृषि कानून रद्द नहीं होंगे तो फिर समिति के गठन का कोई मतलब नहीं है। राज्य में सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर वसूली संबंधी विधानसभा में लाये गए विधेयक ने भी किसानों को नाराज किया है। कांग्रेस के विरोध के बावजूद यह विधेयक पारित कर दिया गया। इस विधेयक के कानून का रूप ले लेने के बाद सार्वजनिक संपत्ति की तोड़फोड़ करने वाले लोगों से नुकसान से वसूली की जाएगी।
विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने सदन के भीतर और बाहर भी, मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से इस विधेयक को वापस लेने के लिए कहा है। ऐसा माना जा रहा है कि यह विधेयक केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन के मद्देनजर लाया गया है। हुड्डा ने कहा कि इस कानून के जरिए खट्टर सरकार लोगों में डर का माहौल पैदा करना चाहती है। इसी वजह से गृह मंत्री अनिल विज ने चर्चा के लिए जैसे ही बिल सदन में पेश किया, कांग्रेस विधयकों ने हंगामा कर दिया। नाराज कांग्रेसी विधायक वेल में पहुंच गए और बिल वापस लेने के लिए उन्होंने नारेबाजी भी की।
गृह मंत्री विज ने जब हरियाणा लोक व्यवस्था में विघ्न के दौरान संपत्ति क्षति वसूली विधेयक, 2021 सदन में पेश किया तो नेता प्रतिपक्ष हुड्डा ने इस पर कई सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि सरकार यह विधेयक जल्दबाजी में लाई है। इसे पारित करने के बजाय पहले विचार के लिए विधानसभा की चयन समिति के पास भेजा जाना चाहिए। जल्दबाजी में इसे पारित करना ठीक नहीं होगा। हुड्डा ने विधानसभा अध्यक्ष से इस विधेयक पर सदन में मतदान कराने की भी मांग की। कांग्रेस की तरफ से हुड्डा के साथ विधायक किरण चौधरी, डॉ. रघुबीर कादियान, गीता भुक्कल और जगबीर मलिक ने मोर्चा संभाला। विधेयक को लेकर विधानसभा अध्यक्ष से भी कांग्रेस विधायकों की बहस हुई।
विधेयक की पैरवी करते हुए गृह मंत्री विज ने कहा कि सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान सहन नहीं किया जाएगा। आंदोलन शांतिपूर्वक होने चाहिए, लेकिन उपद्रवी प्रदर्शनों के दौरान सरकारी और निजी संपत्ति को भी नुकसान पहुंचाते हैं। विधेयक में नुकसान के आकलन और वसूली के लिए एक या अनेक क्लेम ट्रिब्यूनल गठित करने का प्रावधान है। इसमें चेयरमैन और कुछ सदस्यों को शामिल किए जाने का प्रावधान है।
बहरहाल, जब तक केंद्र के कृषि कानून वापस नहीं लिए जाएंगे, आंदोलन कर रहे किसानों का बॉर्डर से वापस लौटना मुश्किल है। देखना है कि किसानों से एक फोन दूर केंद्र सरकार पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद इस समस्या के हल के लिए क्या कदम उठाती है?
खुद मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने हाल में अपनी सरकार की ‘सबका साथ, सबका विकास’ की प्रतिबद्धता को दोहराते हुए प्रदेशवासियों को शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, जल, खेल, बिजली आदि से जुड़ी 1,411 करोड़ रुपए की परियोजनाएं समर्पित की हैं। चंडीगढ़ में आयोजित राज्य स्तरीय कार्यक्रम में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उन्होंने राज्य के 21 जिलों में 163 परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया। इनमें 475 करोड़ रुपये की लागत वाली 80 परियोजनाओं का उद्घाटन और 935 करोड़ रुपये की 83 परियोजनाओं के शिलान्यास शामिल हैं।
करोड़ों रुपये की परियोजनाओं को समर्पित कर के खट्टर ने यह संदेश दिया है कि राज्य सरकार प्रदेश के समुचित और सारे क्षेत्रों का एक समान विकास करने की नीति पर चल रही है। अब उन्होंने राज्य को जो सौगात दी है, उनसे हरियाणा विकास के पथ पर और आगे बढ़ेगा। दरअसल, यदि हरियाणा में किसान आंदोलन नहीं होता तो मुख्यमंत्री हर जिले में जाते और लोगों के बीच इन योजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन करते, लेकिन हालात अभी इसके अनुकूल नहीं हैं। ऐसे में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से ही काम चलाया जा रहा है।
मौजूदा स्थिति सत्तारूढ़ दल के लिए अच्छी नहीं है, यह बात मुख्यमंत्री खट्टर के साथ ही उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला भी समझ रहे हैं। यही वजह है कि विधानसभा के बजट सत्र में मुख्यमंत्री ने एक पंक्ति का प्रस्ताव पेश किया था कि समाज का कोई भी वर्ग या संगठन किसी राजनीतिक पार्टी के नेता का बहिष्कार (बॉयकॉट) की घोषणा करता है तो यह सदन उसकी निंदा करता है। हालांकि, विपक्ष के नेता भूपेन्द्र सिंह हुड्डा इस प्रस्ताव से सहमत नहीं थे। उनका मानना था कि लोकतंत्र में आंदोलन और असहमति जताने का अधिकार सभी को है। उन्होंने सदन में स्पष्ट किया कि कांग्रेस पार्टी का कोई भी विधायक, किसी किसान संगठन या किसी वर्ग को राजनेताओं के बहिष्कार के लिए न तो उकसा रहा है और न ही कभी किसी को उकसाएगा। लेकिन इस निंदा प्रस्ताव का नतीजा क्या निकला? उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला को फरीदाबाद जिले के नरियाला गांव में विरोध का सामना करना पड़ा। माहौल उस वक्त तनावपूर्ण हो गया था, जब समारोह में किसान प्रदेश के उप मुख्यमंत्री चौटाला के विरोध के लिए पहुंच गए। यहां नाराज किसानों ने दुष्यंत को काले झंडे दिखाए। पुलिस ने वक्त रहते हालात पर काबू पाया और कई प्रदर्शनकारी किसानों को गिरफ्तार कर लिया।
भारतीय किसान यूनियन के नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने लोगों से कहा है कि वे उन्हें मंत्रियों और विधायकों के कार्यक्रमों की जानकारी दें, ताकि वे रात के अंधेरे में भी किसी गांव में उद्घाटन या शिलान्यास नहीं कर पाएं। सूचना देने वाले लोगों को यूनियन ने इनाम देने का भी ऐलान किया है। सच तो यही है कि पिछले सौ से ज्यादा दिनों से मंत्रियों और विधायकों के दौरे बंद हैं। सब जानते हैं कि करनाल जिले के कैमला गांव में मुख्यमंत्री खट्टर किसान पंचायत नहीं कर पाए थे। उनका हेलीकॉप्टर सभा स्थल तक पहुंचा जरूर, लेकिन एक चक्कर लगा कर वापस लौट गया। नाराज किसानों ने हेलीपैड भी उखाड़ दिया। इसी तरह उप मुख्यमंत्री चौटाला का उचाना में बनाया गया हेलीपैड भी क्षतिग्रस्त कर दिया गया था। ऐसे में चौटाला ने अपना दौरा रद्द कर दिया था। ऐसा नहीं है कि खट्टर सरकार किसानों की नाराजगी खत्म नहीं करना चाहती। किसानों को राजी करने के मकसद से ही खट्टर सरकार एपीएमसी (एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटी) अधिनियम में बदलाव के लिए राजी हुई थी। सदन में इसके लिए खट्टर ने हां करते हुए कहा था कि वे किसानों के हित में एपीएमसी अधिनियम से कुछ प्रावधान हटाने को तैयार हैं।
किसान आंदोलन के मद्देनजर इसे खट्टर का एक बड़ा दांव माना गया था। इससे पहले विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा इसी मुद्दे पर सदन में एक निजी विधेयक लाए थे, लेकिन तकनीकी कारणों से इसे स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता ने रद्द कर दिया था। खट्टर ने यह भी कहा था कि पूरा सदन एकमत हो तो इस मामले में कानून के जानकार सदस्यों की एक पांच सदस्यीय समिति गठित की जा सकती है। समिति की जो भी सिफारिशें होंगी, उनके अनुसार आगे कदम उठाए जा सकते हैं। विपक्ष के नेता हुड्डा ने भी खट्टर के इस प्रस्ताव का समर्थन किया। समिति के गठन के सिलसिले में खट्टर ने पांच सदस्यों के नाम लिए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस से भारत भूषण बत्रा व किरण चौधरी, भाजपा से डॉ. अभय यादव व सुधीर सिंगला और जजपा से रामकुमार गौतम को समिति में शामिल किया जा सकता है।
साथ ही, खट्टर ने आशंका जाहिर करते हुए कहा था कि एपीएमसी के सेक्शन-42 को हटाने से कहीं ऐसा नहीं हो कि किसान जमीन के मामलों में कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटता रह जाएं। समिति में शामिल सदस्यों को इस मुद्दे पर विचार-विमर्श कर ऐसा रास्ता सुझाना होगा, जिससे किसानों का भला हो सके। लेकिन खट्टर का यह दांव चला नहीं। कांग्रेस की विधायक किरण चौधरी और भारत भूषण बत्रा ने यह कहते हुए समिति से इस्तीफे दे दिए कि जब मुख्यमंत्री कह चुके हैं कि कृषि कानून रद्द नहीं होंगे तो फिर समिति के गठन का कोई मतलब नहीं है। राज्य में सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर वसूली संबंधी विधानसभा में लाये गए विधेयक ने भी किसानों को नाराज किया है। कांग्रेस के विरोध के बावजूद यह विधेयक पारित कर दिया गया। इस विधेयक के कानून का रूप ले लेने के बाद सार्वजनिक संपत्ति की तोड़फोड़ करने वाले लोगों से नुकसान से वसूली की जाएगी।
विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने सदन के भीतर और बाहर भी, मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से इस विधेयक को वापस लेने के लिए कहा है। ऐसा माना जा रहा है कि यह विधेयक केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन के मद्देनजर लाया गया है। हुड्डा ने कहा कि इस कानून के जरिए खट्टर सरकार लोगों में डर का माहौल पैदा करना चाहती है। इसी वजह से गृह मंत्री अनिल विज ने चर्चा के लिए जैसे ही बिल सदन में पेश किया, कांग्रेस विधयकों ने हंगामा कर दिया। नाराज कांग्रेसी विधायक वेल में पहुंच गए और बिल वापस लेने के लिए उन्होंने नारेबाजी भी की।
गृह मंत्री विज ने जब हरियाणा लोक व्यवस्था में विघ्न के दौरान संपत्ति क्षति वसूली विधेयक, 2021 सदन में पेश किया तो नेता प्रतिपक्ष हुड्डा ने इस पर कई सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि सरकार यह विधेयक जल्दबाजी में लाई है। इसे पारित करने के बजाय पहले विचार के लिए विधानसभा की चयन समिति के पास भेजा जाना चाहिए। जल्दबाजी में इसे पारित करना ठीक नहीं होगा। हुड्डा ने विधानसभा अध्यक्ष से इस विधेयक पर सदन में मतदान कराने की भी मांग की। कांग्रेस की तरफ से हुड्डा के साथ विधायक किरण चौधरी, डॉ. रघुबीर कादियान, गीता भुक्कल और जगबीर मलिक ने मोर्चा संभाला। विधेयक को लेकर विधानसभा अध्यक्ष से भी कांग्रेस विधायकों की बहस हुई।
विधेयक की पैरवी करते हुए गृह मंत्री विज ने कहा कि सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान सहन नहीं किया जाएगा। आंदोलन शांतिपूर्वक होने चाहिए, लेकिन उपद्रवी प्रदर्शनों के दौरान सरकारी और निजी संपत्ति को भी नुकसान पहुंचाते हैं। विधेयक में नुकसान के आकलन और वसूली के लिए एक या अनेक क्लेम ट्रिब्यूनल गठित करने का प्रावधान है। इसमें चेयरमैन और कुछ सदस्यों को शामिल किए जाने का प्रावधान है।
बहरहाल, जब तक केंद्र के कृषि कानून वापस नहीं लिए जाएंगे, आंदोलन कर रहे किसानों का बॉर्डर से वापस लौटना मुश्किल है। देखना है कि किसानों से एक फोन दूर केंद्र सरकार पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद इस समस्या के हल के लिए क्या कदम उठाती है?
-सुमित्रा, चंडीगढ़।