- आरएसएस के पृष्ठभूमि वाले सुरेश भट्ट को सल्ट विधानसभा की कमान
- अजेय और सुरेश की जोड़ी को लेकर अटकलों का दौर जारी
राजनीति
अखिल कुमार
भाजपा संगठन में ऊपर से भले ही सबकुछ ठीक चल रहा है लेकिन कहीं न कहीं समस्याओं का लोचा बढ़ता जा रहा है। पहले तो प्रदेश अध्यक्ष हल्का और कम तेज तर्रार है। दूसरे हरियाणा के पूर्व संगठन मंत्री सुरेश भट्ट को भाजपा ने तीसरे महामंत्री के रूप में उत्तराखंड में तैनाती दे दी। वर्षों तक एक छत्र राज करने वाले संगठन मंत्री सुरेश भट्ट को आते ही सल्ट चुनाव की तैयारी पर लगा दिया। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी संघ पृष्ठभूमि के हैं और इनकी छवि पाक-साफ स्वयंसेवकों में गिनी जाती है। आज भी संघ के बड़े पदाधिकारी विचार-विमर्श करने के लिए मुख्यमंत्री आवास में आते हैं। भाजपा संगठन में व्यवस्था की दृष्टि से देखा जाए तो महामंत्री सर्वोच्च पद होता है। संगठन की रीति-नीति का निर्धारण महामंत्री संगठन के निर्देशों पर ही होता है। वर्तमान महामंत्री संगठन अजेय कुमार भी संघ की ओर से ही संगठन महामंत्री बनाकर भेजे गए हैं। दूसरी ओर हरियाणा के महामंत्री संगठन सुरेश भट्ट को महामंत्री बनाकर उत्तराखंड में तीसरे महामंत्री के रूप में स्थापित कर दिया गया है हालांकि सुरेश भट्ट उत्तराखंड आने के बाद कुछ दिन तो स्वागत समारोह में व्यस्त रहे, उसके बाद भी उन्हें सल्ट चुनाव की जिम्मेदारी सौंप दी गई है। सल्ट के युवा विधायक सुरेन्द्र सिंह जीना का हाल ही में निधन हो गया था। उनकी पत्नी भी उनके निधन से कुछ दिन पूर्व स्वर्गवासी हो गई थीं। इसके पीछे कोरोना जैसी महामारी थी। तेज तर्रार छवि के युवा विधायक सुरेन्द्र सिंह जीना की सीट पर कौन लड़ेगा यह तो संगठन बताएगा लेकिन माना जा रहा है कि संगठन की ओर से उनके परिजनों में से भी किसी को टिकट दिया जा सकता है। ऐसे में सहानुभूति की लहर भाजपा को जिताने का महत्वपूर्ण कार्य करेगी। यदि कांग्रेस अपनी ओर से कोई विशेष प्रत्याशी लाती है तो भी भाजपा कहीं न कहीं कांग्रेस से इक्कीस पड़ रही है। ऐसे में संगठन में संभवत: सुरेश भट्ट को इस काम में लगाकर इस जीत का श्रेय उन्हें सौंपने का मन बनाया होगा लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि यह चुनाव सुरेश भट्ट की परीक्षा होगा और यदि कहीं थोड़ी-बहुत कोताही हुई तो पूरी जिम्मेदारी उनके ऊपर छोड़ दी जाएगी। हरियाणा के महामंत्री संगठन के रूप में सुरेश भट्ट ने जो अपनी छवि बनाई है, कुछ लोग उसे भी डेंट लगाने का प्रयास कर रहे हैं, ऐसी चर्चा है। इस बात में कितनी सत्यता है, यह तो संगठन के लोग ही बता सकते हैं, लेकिन अपनी नियुक्ति के बाद सुरेश भट्ट भी प्रदेश मुख्यालय में न के बराबर ही दिखे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पृष्ठभूमि वाले सुरेश भट्ट हरियाणा जैसे बड़े प्रांत में महामंत्री संगठन रहे हैं। उन्हें छोटे प्रदेश में महामंत्री संगठन पद पर न लाकर महामंत्री बनाया गया है, ऐसे में वर्तमान महामंत्री संगठन अजेय कुमार और सुरेश भट्ट के बीच कैसा तालमेल होगा यह काल के गाल में है। फिलहाल लोगों का मानना है कि दोनों के बीच संबंध इसलिए मधुर नहीं हो सकते कि दोनों एक ही पृष्ठभूमि के हैं। जहां अब तक अजेय कुमार उत्तर प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र का काम देख रहे थे जो व्यवस्था की दृष्टि से भले ही बड़ा रहा हो, लेकिन जिम्मेदारी की दृष्टि से वह इतना महत्वपूर्ण नहीं था जितना महत्वपूर्ण उत्तराखंड महामंत्री संगठन का पद है। ऐसे में अपने से जूनियर महामंत्री संगठन के निर्देश पर काम करना सुरेश भट्ट के लिए शायद काफी अच्छा नहीं होगा। वैसे भी सुरेश भट्ट ब्राह्मण नेताओं में माने जाते हैं। पृष्टभूमि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की है और बड़े प्रदेश का कार्य देख चुके हैं। वर्तमान में उस प्रदेश में कार्य करने को विवश है जिसका प्रदेश अध्यक्ष थका हुआ ब्राह्मण नेता है।
ठीक यही स्थिति अन्य महामंत्रियों की है। जहां राजेन्द्र भंडारी विश्व हिन्दू परिषद जैसे संगठन से भाजपा में आये हैं और तेज-तर्रार छवि के हैं। वहीं दूसरे महामंत्री कुलदीप कुमार विकासनगर के पूर्व विधायक रह चुके हैं, लेकिन दोबारा उन पर दांव नहीं आजमाया गया। पूर्व विधायक और सौम्य छवि होने के नाते उन्हें फिलहाल महामंत्री पद का कार्यभार सौंपा गया है। ऐसे में अपने दोनों जूनियर महामंत्रियों के साथ सुरेश भट्ट का तालमेल कैसा रहेगा, यह सबकुछ अभी स्पष्ट नहीं है। वैसे भी भाजपा की नई टीम में दमदार नेताओं का अभाव है जो पहली टीम से भी कमतर है। आने वाला वर्ष चुनावी वर्ष है। यह बात भी सच है कि भारतीय जनता पार्टी के विपक्षी यानि कांग्रेस पार्टी अंतरविर्रोधों का शिकार है। आम आदमी पार्टी का कोई जनाधार नहीं है। वह जोड़तोड़ गठजोड़ कर अपने संगठन को खड़ा कर रही है। उत्तराखंड क्रांति दल समेत सभी क्षेत्रीय दलों का आधार समाप्त हो गया है। अब तक चुनाव ने ऐसा ही निर्णय दिया है। भाजपा संगठन बूथ स्तर तक खड़ा तो है लेकिन कमजोर नेतृत्व अपने कार्यकर्ताओं का कितना इस्तेमाल कर पाएगा यह तो समय बताएगा। ऐसे में एक म्यान में दो तलवारें यानि हरियाणा के पूर्व महामंत्री संगठन सुरेश भट्ट और उत्तराखंड के वर्तमान महामंत्री संगठन अजेय कुमार की जोड़ी कितना कारगर प्रयास कर पाएगी यह समय बताएगा। लोगों की मान्यता है कि दोनों संगठन महामंत्रियों की यह जोड़ी अलग-अलग दिशाओं में जाकर कहीं संगठन का नुकसान न कर दें जिसका परिणाम संगठन को भुगतना पड़े।