- पराली जलाने से रोकने के लिए कानूनन सख्ती के बजाय किसानों को सुविधाजनक विकल्प उपलब्ध करवाना जरूरी है। साथ ही, बेेहद जरूरी है कि आम आदमी को पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति सजग बनाना ताकि वह पर्यावरण को नष्ट करने वाले कारकों से सावधान रहें…
देश की राजधानी दिल्ली समेत 14 बडे़ शहर, फरीदाबाद, गाजियाबाद, लखनऊ, वाराणसी और पटना आदि में वायु प्रदूषण खतरना
क स्तर तक पहुंच गया है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र तो पूरी तरह गैस चैंबर में तब्दील हो चुका है। इधर, सर्दी ने जरा सी दस्तक दी और उधर, दिल्ली में वायु प्रदूषण के कारण लोगों का सांस लेना भी मुहाल हो गया। करवा चैथ पर प्रदूषण के कारण दिल्ली और एनसीआर के लोग काफी समय तक चांद निकलने का इंतजार करते रहे और बाद में धुंधला सा चांद दिखाई दिया। इसी तरह छोटी दिवाली के मौके पर देश भर में हिसार सबसे प्रदूषित शहर रहा। यानी यहां हवा का गुणवत्ता सूचकांक 424 दर्ज किया गया। पिछले एक दशक से ज्यादा समय से दीपावली के आसपास दिल्ली-एनसीआर में आसमान में घना स्माग छा जाता है। इसके चलते लोगों का सांस लेना मुहाल हो जाता है। गत वर्ष सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली समेत हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश की सरकारों को प्रदूषण पर प्रभावी रोक लगाने के आदेश दिये थे। सालभर बीतने के बावजूद ना तो केंद्र और ना ही राज्य सरकारों ने प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए ठोस कदम उठाये। इसके चलते हालात एक बार फिर वैसे ही है।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण के लिए हरियाणा और पंजाब के किसानों के पराली जलाने को जिम्मेदार ठहराया जाता है। ये बात सही है कि हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में ज्यादातर किसान पराली जलाते हैं। इसी के चलते सुप्रीम कोर्ट ने पराली जलाने पर एक करोड़ रुपये जुर्माना और पांच साल की सजा का प्रावधान किया। अब सवाल ये उठता है कि क्या राज्य सरकारें इसे सख्ती से लागू कर पायेंगी! वोटरों की नाराजगी से डरी हुईं जो राज्य सरकारें त्योहारों और समारोह में आतिशबाजी और पटाखों पर रोक लगाने जैसा छोटा सा कदम उठा नहीं पातीं, वे पराली जलाने वालों के खिलाफ सख्ती बरतेंगी इसमें संदेह है। इसके साथ ही ये भी सच है कि एनसीआर में प्रदूषण के लिए अकेले पराली जलाने वाले किसान ही जिम्मेदार नहीं हैं। प्रदूषण फैलाने में एनसीआर क्षेत्र में चल रही फैक्ट्रियों के साथ-साथ डीजल और पेट्रोल से चलने वाले वाहनों की बेलगाम बढ़ती संख्या भी है। इसके अलावा एनसीआर के साथ लगते ईंट भट्टों और निर्माण गतिविधियों का प्रदूषण बढ़ाने में अहम योगदान है। प्रदूषण रोकने के लिए तमाम नियम कानूनों के बावजूद फैक्ट्रियों, वाहनों व ईंट भट्टों से होने वाले प्रदूषण को रोकने में सरकारी तंत्र बुरी तरह विफल है। इन पर पराली जलाने वाले किसानों की तरह सुप्रीम कोर्ट का रवैया भी सख्त नहीं है। प्रदूषण बढ़ने के तमाम कारणों की जानकारी राज्य और केंद्र सरकारों के साथ ही सर्वोच्च अदालत को भी है। लेकिन लोगों की चुनी हुईं सरकारें अपने ही लोगों के जीवन के प्रति गंभीर नहीं दिखती हैं।
कोरोना महामारी के चलते प्रदूषण के घातक परिणाम होंगे। प्रदूषण जनित बीमारियों के कारण देश में साल 2020 में करीब 16.7 लाख लोगों की मौत हुई थी। इनमें 1.16 लाख नवजात शिशु थे। प्रदूषित हवा में सांस लेने के कारण श्वास संबंधी रोगों के साथ कैंसर, टीबी, हृदयाघात और मधुमेह जैसी बीमारियां तेजी से पैर पसार रही हैं। कोरोना से मरने वालों में अधिकांश श्वास संबंधी बीमारियों और मधुमेह तथा हृदय रोगों से पीड़ित थे। सर्दी बढ़ने के साथ ही देश में कोरोना का प्रकोप बढ़ना शुरू हो गया है। ऐसे में प्रदूषण को बढ़ने से रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में दीपावली पर पटाखे जलाने पर पूर्णतः रोक लगा दी। भले ही पुलिस प्रशासन पटाखों पर रोक लगाने में पूरी तरह सफल नहीं हो पाया, लेकिन काफी हद तक पटाखों से होने वाले प्रदूषण में इस बार कुछ कमी दर्ज की गयी। पिछले दो दशक में प्रदूषण 42 फीसदी की तेजी के साथ बढ़ा है और प्रदूषण के कारण जीवन प्रत्याशा भी 5 साल कम हुई है। वायु प्रदूषण के चलते जहां बीमारियां निरंतर बढ़ रही हैं, वहीं इसके कारण आर्थिक विकास भी अवरूद्ध हो रहा है।
हमारा सरकारी तंत्र प्रदूषण को लेकर कतई गंभीर नहीं है। वह मुसीबत आने पर भी ऊपरी आदेश और अदालत की फटकार के बाद ही सक्रिय होता है। उस पर भी तात्कालिक उपायों से प्रदूषण की समस्या का निदान करने की कोशिश करता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश के 14 बड़े शहर दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में शामिल है। हालात ये है कि देश की 80 फीसदी से ज्यादा आबादी जहरीली हवा में सांस लेने को विवश है। ऐसे में सरकार को अपने लोगों के जीवन की रक्षा के लिए ठोस उपाय करने होंगे। इसके लिए सरकार को जहां ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने पर जोर देना होगा, वहीं प्रदूषण फैलाने वाली औद्योगिक इकाइयों का भी उपचार करना होगा। साथ ही, डीजल व पेट्रोल से चलने वाले वाहनों को भी जितना जल्दी संभव हो उसे रोकना होगा। दिल्ली में 2019 में पेट्रोल व डीजल से चलने वाले एक करोड़ से ज्यादा पंजीकृत वाहन थे और इसमें हर साल 4 लाख से ज्यादा का इजाफा हो रहा है। इसके लिए सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को सुविधाजनक और सर्वसुलभ बनाने की दरकार है। सरकार को विद्युत चालित वाहनों को प्रोत्साहित करने के साथ ही कोयला आधारित विद्युत परियोजनाओं पर भी रोक लगानी होगी। अनुसंधान पर जोर देकर सौर ऊर्जा के क्षेत्र में काम आने वाले उपकरणों को सस्ता उपलब्ध करवाना होगा।
पराली जलाने से रोकने के लिए कानूनन सख्ती के बजाय किसानों को सुविधाजनक विकल्प उपलब्ध करवाना जरूरी है। किसानों को कृषि अवशेषों से जैविक खाद बनाने की विधि सिखानी होगी, ताकि कृषि अपशिष्ट उनके लिए समस्या की बजाय सुविधा और आमदनी का जरिया बन सके। बड़े शहरों से निकलने वाले कचरे के भी शीघ्र और सुरक्षित निपटान के लिए उन्नत तकनीक विकसित करनी होगी। आम तौर पर कूड़े का निपटान भी आग लगाकर किया जाता है। इस प्रवृत्ति पर रोक लगाना जरूरी है। साथ ही, सबसे अहम है आम आदमी को पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति सजग बनाना, ताकि वह पर्यावरण को नष्ट करने वाले कारकों से सावधान रहें और दूसरों को भी नुकसान पहुंचाने से रोक सके।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण के लिए हरियाणा और पंजाब के किसानों के पराली जलाने को जिम्मेदार ठहराया जाता है। ये बात सही है कि हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में ज्यादातर किसान पराली जलाते हैं। इसी के चलते सुप्रीम कोर्ट ने पराली जलाने पर एक करोड़ रुपये जुर्माना और पांच साल की सजा का प्रावधान किया। अब सवाल ये उठता है कि क्या राज्य सरकारें इसे सख्ती से लागू कर पायेंगी! वोटरों की नाराजगी से डरी हुईं जो राज्य सरकारें त्योहारों और समारोह में आतिशबाजी और पटाखों पर रोक लगाने जैसा छोटा सा कदम उठा नहीं पातीं, वे पराली जलाने वालों के खिलाफ सख्ती बरतेंगी इसमें संदेह है। इसके साथ ही ये भी सच है कि एनसीआर में प्रदूषण के लिए अकेले पराली जलाने वाले किसान ही जिम्मेदार नहीं हैं। प्रदूषण फैलाने में एनसीआर क्षेत्र में चल रही फैक्ट्रियों के साथ-साथ डीजल और पेट्रोल से चलने वाले वाहनों की बेलगाम बढ़ती संख्या भी है। इसके अलावा एनसीआर के साथ लगते ईंट भट्टों और निर्माण गतिविधियों का प्रदूषण बढ़ाने में अहम योगदान है। प्रदूषण रोकने के लिए तमाम नियम कानूनों के बावजूद फैक्ट्रियों, वाहनों व ईंट भट्टों से होने वाले प्रदूषण को रोकने में सरकारी तंत्र बुरी तरह विफल है। इन पर पराली जलाने वाले किसानों की तरह सुप्रीम कोर्ट का रवैया भी सख्त नहीं है। प्रदूषण बढ़ने के तमाम कारणों की जानकारी राज्य और केंद्र सरकारों के साथ ही सर्वोच्च अदालत को भी है। लेकिन लोगों की चुनी हुईं सरकारें अपने ही लोगों के जीवन के प्रति गंभीर नहीं दिखती हैं।
कोरोना महामारी के चलते प्रदूषण के घातक परिणाम होंगे। प्रदूषण जनित बीमारियों के कारण देश में साल 2020 में करीब 16.7 लाख लोगों की मौत हुई थी। इनमें 1.16 लाख नवजात शिशु थे। प्रदूषित हवा में सांस लेने के कारण श्वास संबंधी रोगों के साथ कैंसर, टीबी, हृदयाघात और मधुमेह जैसी बीमारियां तेजी से पैर पसार रही हैं। कोरोना से मरने वालों में अधिकांश श्वास संबंधी बीमारियों और मधुमेह तथा हृदय रोगों से पीड़ित थे। सर्दी बढ़ने के साथ ही देश में कोरोना का प्रकोप बढ़ना शुरू हो गया है। ऐसे में प्रदूषण को बढ़ने से रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में दीपावली पर पटाखे जलाने पर पूर्णतः रोक लगा दी। भले ही पुलिस प्रशासन पटाखों पर रोक लगाने में पूरी तरह सफल नहीं हो पाया, लेकिन काफी हद तक पटाखों से होने वाले प्रदूषण में इस बार कुछ कमी दर्ज की गयी। पिछले दो दशक में प्रदूषण 42 फीसदी की तेजी के साथ बढ़ा है और प्रदूषण के कारण जीवन प्रत्याशा भी 5 साल कम हुई है। वायु प्रदूषण के चलते जहां बीमारियां निरंतर बढ़ रही हैं, वहीं इसके कारण आर्थिक विकास भी अवरूद्ध हो रहा है।
हमारा सरकारी तंत्र प्रदूषण को लेकर कतई गंभीर नहीं है। वह मुसीबत आने पर भी ऊपरी आदेश और अदालत की फटकार के बाद ही सक्रिय होता है। उस पर भी तात्कालिक उपायों से प्रदूषण की समस्या का निदान करने की कोशिश करता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश के 14 बड़े शहर दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में शामिल है। हालात ये है कि देश की 80 फीसदी से ज्यादा आबादी जहरीली हवा में सांस लेने को विवश है। ऐसे में सरकार को अपने लोगों के जीवन की रक्षा के लिए ठोस उपाय करने होंगे। इसके लिए सरकार को जहां ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने पर जोर देना होगा, वहीं प्रदूषण फैलाने वाली औद्योगिक इकाइयों का भी उपचार करना होगा। साथ ही, डीजल व पेट्रोल से चलने वाले वाहनों को भी जितना जल्दी संभव हो उसे रोकना होगा। दिल्ली में 2019 में पेट्रोल व डीजल से चलने वाले एक करोड़ से ज्यादा पंजीकृत वाहन थे और इसमें हर साल 4 लाख से ज्यादा का इजाफा हो रहा है। इसके लिए सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को सुविधाजनक और सर्वसुलभ बनाने की दरकार है। सरकार को विद्युत चालित वाहनों को प्रोत्साहित करने के साथ ही कोयला आधारित विद्युत परियोजनाओं पर भी रोक लगानी होगी। अनुसंधान पर जोर देकर सौर ऊर्जा के क्षेत्र में काम आने वाले उपकरणों को सस्ता उपलब्ध करवाना होगा।
पराली जलाने से रोकने के लिए कानूनन सख्ती के बजाय किसानों को सुविधाजनक विकल्प उपलब्ध करवाना जरूरी है। किसानों को कृषि अवशेषों से जैविक खाद बनाने की विधि सिखानी होगी, ताकि कृषि अपशिष्ट उनके लिए समस्या की बजाय सुविधा और आमदनी का जरिया बन सके। बड़े शहरों से निकलने वाले कचरे के भी शीघ्र और सुरक्षित निपटान के लिए उन्नत तकनीक विकसित करनी होगी। आम तौर पर कूड़े का निपटान भी आग लगाकर किया जाता है। इस प्रवृत्ति पर रोक लगाना जरूरी है। साथ ही, सबसे अहम है आम आदमी को पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति सजग बनाना, ताकि वह पर्यावरण को नष्ट करने वाले कारकों से सावधान रहें और दूसरों को भी नुकसान पहुंचाने से रोक सके।